नई दिल्ली। संसद के शीतकालीन सत्र में मनरेगा को निरस्त करने वाले नए कानून पर विपक्ष ने नाराजगी जताई है। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने लोकसभा में कहा कि यह अभियान पिछले 20 सालों से ग्रामीण भारत को रोजगार देने में और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सक्षम बनाने में मददगार रहा है।
प्रियंका गांधी के अनुसार, “यह इतना क्रांतिकारी कानून है कि, जब इसे बनाया गया तो सदन में मौजूद सभी दलों ने इसे सहमति दी थी। इसके कारण गरीब से गरीब लोगों को 100 दिन का रोजगार मिलता है।”
73वें संविधान संशोधन के विपरीत: प्रियंका
प्रियंका गांधी ने आगे कहा, “मुझे नए कानून पर आपत्ति है, क्योंकि मनरेगा के तहत हमारे गरीब भाई-बहनों को मिलने वाले कानूनी गारंटी देना अनिवार्य होता है और इसकी मांग के अनुसार ही केंद्र सरकार पैसा आवंटित करती है। मगर, नए कानून में केंद्र सरकार पहले से बजट निर्धारित कर सकती है, जिससे संविधान के 73वें संशोधन (पंचायती राज) को नजरअंदाज किया जा रहा है।”
प्रियंका गांधी ने कहा-
ग्राम सभाओं का अधिकार कमजोर किया जा रहा है। हमारे संविधान की मूल भावना है कि हर व्यक्ति के हाथों में शक्ति होनी चाहिए। यही मूल भावना पंचायती राज में है और नया अधिनियम उसी मूल भावना का विरोध कर रहा है। इस विधेयक से रोजगार का कानूनी अधिकार कमजोर हो रहा है और यह संविधान के विपरीत है।
राज्य की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा भार: प्रियंका
प्रियंका गांधी का कहना है, “मनरेगा में 90 प्रतिशत अनुदान केंद्र सरकार से आता था और नए विधेयक में कुछ राज्यों को सिर्फ 60 प्रतिशत अनुदान ही केंद्र की ओर से मिलेगा। इससे प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर भार पड़ेगा। इस विधेयक के द्वारा केंद्र का नियंत्रण बढ़ाया जा रहा है और जिम्मेदारी घटाई जा रही है।”
रोजगार के दिन बढ़े, लेकिन वेतन नहीं: प्रियंका
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी का कहना है कि नए कानून में सरकार ने रोजगार के दिन को 100 से बढ़ाकर 125 दिन कर दिया गया है, मगर मजदूरों का वेतन बढ़ोत्तरी की कोई बात नहीं है।”
प्रियंका ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “हर योजना का नाम बदलने की सनक समझ नहीं आती। जब-जब यह किया जाता है, तो केंद्र सरकार को ही पैसे खर्च करने पड़ते हैं। बिना चर्चा और सदन की सलाह लिए जल्दी-जल्दी में विधेयक को पास नहीं होना चाहिए। सरकार को यह विधेयक वापस लेकर एक नया विधेयक पेश करना चाहिए।”

