राजिम के नदी के बीचो-बीच बने कुलेश्वर महादेव मंदिर के किनारे रेत में एक संत 11 घंटों तक दबे रहते हैं। रेत में दफन होने के बावजूद उनकी सांसे चलती है। रेत के बाहर उनका धड़कता हुआ सीना सांसो की गति के साथ ऊपर नीचे होता है, तो बाहर खड़े लोगों की यह देखकर सांसे रुक जाती है।
उत्तर प्रदेश से आए शंकर गिरी नाम के इस साधु का ज्यादातर वक्त रेत के नीचे तपस्या करने में बीतता है। रेत के भीतर दफन होकर यह अपने दोनों हाथ ऊपर रखते हैं। हाथों में नारियल होता है जैसे भगवान के सामने प्रार्थना कर रहे हो और अंदर जारी रहती है एक संत का हैरान कर देने वाली तपस्या।
शंकर गिरी के साथ आए उत्तराखंड के साधनों ने बताया कि लगातार सालों की तपस्या के बाद और अभ्यास के बाद एक साधु और रेत के नीचे घंटों तक दफन होकर यह योग कर पाता है। इस दौरान सास भी ली जाती है लेकिन सांस, भीतर ही ली और छोड़ी जाती है अभ्यास की वजह से यह जाप करने वाले संतो को रेत के भीतर रहने की आदत होती है और उनका शरीर इस तकलीफ को भी झेल कर भगवान को याद करने की तपस्या में लीन रहता है।
अव्यवस्था पर संत की शिकायत
उत्तराखंड से आए साधु चंदन शर्मा ने बताया कि वह राजिम माघी पुन्नी मेला में इससे पहले भी आते रहे हैं मगर पिछले कुछ सालों में आयोजन का स्तर गिरता गया है । संतों के लिए कोई खास व्यवस्था नहीं की जाती बाहर होटलों में खाना पीना पड़ता है इससे पहले मेला स्थल पर ही संतों के रहने और खाने का बेहतर इंतजाम होता था।
बिलासपुर में रहने वाले नट समुदाय के लोग भी राजिम मेले में शामिल होने पहुंचते हैं। इस परिवार की छोटी छोटी बच्चियां जमीन से करीब 15 फीट ऊपर रस्सी पर चलकर करतब दिखाती है। समुदाय की महिलाओं ने सीधे तौर पर कोई बातचीत तो नहीं की मगर कहा कि वह अपने पेशे से खुश हैं, हम लोगों से जबरन पैसे नहीं मांगते यदि करतब देख कर कोई खुश होता है और रुपए देता है तो इसी से उनका गुजारा चलता है। इस समुदाय में माँ अपनी बच्चियों को रस्सी पर चलना सिखाती है इसी तरह बड़ी होती हैं और यह परंपरा चलती रहती है जो राजिम माघी पुन्नी मेला में देखने को मिलती है।