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निराहार रहकर भी स्वस्थ, नहीं हुआ कोई रोग
स्वामी गौतमानंद महाराज ने बताया कि वे केवल दूध और पानी का सेवन करते हैं, लेकिन भोजन का त्याग करने के बावजूद वे पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं और उन्हें आज तक किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं हुई है. उनके इस तप ने श्रद्धालुओं और वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ा आश्चर्य खड़ा कर दिया है.
कैसे शुरू हुई यह दिव्य तपस्या?
जब उनसे इस कठोर व्रत की शुरुआत के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि साल 2010 में एक बार उन्हें बाहर यात्रा पर रुकना पड़ा, लेकिन वहां का भोजन उन्हें रुचिकर नहीं लगा. तब उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि “हे प्रभु! मुझे ऐसी शक्ति दें कि मुझे भूख ही न लगे.” और आश्चर्यजनक रूप से वे पूरे पांच दिन तक बिना भोजन के रहे, फिर भी उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई. यही अनुभव उन्हें यह संकल्प लेने की प्रेरणा दे गया कि अब वे आजीवन अन्न ग्रहण नहीं करेंगे.
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पत्नी भी निभा रही हैं कठिन व्रत
उनकी इस कठोर साधना में उनकी जीवन संगिनी भी सहभागी हैं. उन्होंने भी तीन-तीन दिन तक उपवास रखने का संकल्प लिया है. दोनों का मानना है कि त्याग और तपस्या से आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है और मनुष्य अपने जीवन के असली उद्देश्य को प्राप्त कर सकता है.
आशीर्वाद से ठीक हुए गंभीर कोरोना पीड़ित
स्वामी गौतमानंद महाराज ने यह भी दावा किया कि उनके आशीर्वाद से कई लोगों की बीमारियां दूर हो चुकी हैं. उन्होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि एक बार एक गंभीर कोरोना संक्रमित व्यक्ति उनकी शरण में आया था, जैसे ही उन्होंने उसके सिर पर हाथ रखा, वह पूरी तरह स्वस्थ हो गया.
अखंड ज्योति का संकल्प—जब तक जीवन रहेगा, रोशनी जलती रहेगी
स्वामी के निवास रोहिणीपुरम में अखंड ज्योति जल रही है, जो वर्षभर बिना रुके प्रज्ज्वलित रहती है. उन्होंने कहा, “जब तक मैं जीवित हूँ, यह ज्योति जलती रहेगी. हम दिखावे में नहीं, कर्म में विश्वास रखते हैं”
स्वामी गौतमानंद ने श्रद्धालुओं को संदेश दिया कि कुमार्ग छोड़कर सत्य के मार्ग पर चलें और अपने जीवन के उद्देश्य को समझें. उन्होंने कहा, “ढोंग करने वाले एक दिन सजा पाते हैं. बुरे कर्म से डरिए, क्योंकि सच्चाई की शक्ति सबसे बड़ी होती है.”