बिलासपुर। कांकेर जिले के कई गांवों में पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों के प्रवेश पर बैन के खिलाफ लगाई गई जनहित याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि प्रलोभन या गुमराह कर जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए होर्डिंग्स लगाना असंवैधानिक नहीं है। ऐसा लगता है कि ये होर्डिंग्स संबंधित ग्राम सभाओं ने स्थानीय जनजातियों और सांस्कृतिक विरासत के हितों की रक्षा के लिए एक एहतियाती उपाय के रूप में लगाए हैं। डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ताओं को पेसा नियम 2022 के तहत ग्राम सभा और संबंधित अधिकारी के पास जाने का निर्देश दिया है। मामले में चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई।
बता दें कि कांकेर के रहने वाले दिग्बल टांडी और जगदलपुर के रहने वाले नरेंद्र भवानी ने हाईकोर्ट में अलग-अलग जनहित याचिकाएं लगाई थी। याचिका में बताया गया कि जिले के कुदाल, परवी, बांसला, घोटा, घोटिया, मुसुरपुट्टा और सुलंगी जैसे गांवों में ग्राम पंचायतों ने पेसा एक्ट का हवाला देकर होर्डिंग्स लगाए हैं। जिसमें लिखा है कि गांव पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में आता है और ग्राम सभा संस्कृति की रक्षा के लिए पादरियों और धर्मांतरितों को धार्मिक कार्यक्रम या धर्मांतरण के लिए प्रवेश की अनुमति नहीं है।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि ग्राम पंचायतों ने पेसा एक्ट का हवाला देकर होर्डिंग्स लगाए हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(डी) और 25 का उल्लंघन हैं। उनका यह भी आरोप है कि राज्य सरकार के 14 अगस्त 2025 के सर्कुलर से प्रेरित होकर ये होर्डिंग्स लगाए गए हैं।
जवाब में राज्य सरकार ने कहा, कि याचिकाएं सिर्फ आशंका पर आधारित हैं। राज्य सरकार के सर्कुलर में कहीं भी धार्मिक नफरत फैलाने या होर्डिंग्स लगाने का निर्देश नहीं है। यह सर्कुलर केवल अनुसूचित जनजातियों की पारंपरिक संस्कृति की रक्षा के लिए है।
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि होर्डिंग्स जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए हैं, यह सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी है।

