मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर. केंद्रीय विश्वविद्यालय मणिपुर से प्रोफेसर और स्टूडेंट्स का 18 सदस्यीय दल बीते दिन छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़ स्थित गोंडवाना मरीन फॉसिल्स पार्क पहुंचा. यहां सभी शोधार्थी विद्यार्थियों ने अपने एचओडी के साथ शैक्षणिक भ्रमण कर पार्क में सभी समुद्री जीवाश्म की जानकारी ली. उनके शैक्षणिक भ्रमण के दौरान कलेक्टर डी.राहुल वेंकट के निर्देशानुसार पुरातत्व एवं पर्यटन विभाग के अधिकारी डॉ. विनोद पांडेय ने विस्तार से पार्क की जानकारी दी.
बता दें, 28 करोड़ वर्ष प्राचीन गोंडवाना मरीन फॉसिल पार्क भारत एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा समुद्री जीवाश्म पार्क है. इसे राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक स्मारक का दर्जा भी प्राप्त है. इसकी खोज 1954 में भूवैज्ञानिक एसके घोष ने कोयला खनन के दौरान की थी. यहां से द्विपटली (बायवेल्व) जीव, गैस्ट्रोपॉड, ब्रैकियोपॉड, क्रिनॉइड और ब्रायोजोआ जैसे समुद्री जीवों के जीवाश्म मिले हैं. इसके चलते यह देशभर के शोधार्थी और पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. इसी कड़ी में मणिपुर विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर माइबाम विद्यानंदा एवं एमएससी अर्थ साइंस के विद्यार्थियों ने भी यहां भ्रमण कर रोचक जानकारी ली.

समुद्र में डूबा हुआ था छत्तीसगढ़ का यह भाग
वैज्ञानिकों के अनुसार, यह क्षेत्र पर्मियन युग के समय समुद्र में डूबा हुआ था, ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ा, जिससे समुद्री जीव चट्टानों में दब गए और लाखों वर्षों में जीवाश्म के रूप में बदल गए, जो बाद में जलस्तर घटने से उभरकर उपर आ गए. यह पार्क गोंडवाना महाद्वीप के भूगर्भीय इतिहास को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है.

अन्य देशों में भी मिले जीवाश्म
भारत में गोंडवाना मरीन फॉसिल पार्क की तरह ही ब्राजील के पराना बेसिन, ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स, अंटार्कटिका के अलेक्जेंडर आइलैंड और दक्षिण अफ्रीका के कारू बेसिन में भी इसी तरह के जीवाश्म मिले हैं. इसलिए भारत के इस एक मात्र विशाल समुद्री जीवाश्म पार्क के महत्व को समझते हुए इसके संरक्षण और सौंदर्यीकरण के लिए प्रशासन और वन विभाग लगातार प्रयास कर रहे हैं.