शीतलहर की चपेट में संस्कारधानी

कहां गये गरीबों की सुध लेने वाले समाजसेवी
सुबह और रात को निगम का अलाव खोजते हैं लोग

राजनांदगांव (पहुना)। बार रे बाप! क्या जबर्दस्त ठंड है! इस तरह के शब्द लोगों के मुंह से अकस्मात निकल ही जाते हैं। इन दिनों की ठंड ही ऐसे कड़ाके की पड़ रही है। साधन संपन्न लोग तो इस जाड़े के मौसम का तो मानो मजा ही ले रहे है, लेकिन गरीबों पर तो आफत ही आ गई है। कोरोना काल के पहले तो कुछ समाजसेवी संस्थायें, समाजसेवी व्यक्ति जाड़ा कष्टप्रद होने के दिनों में कंबल, स्वेटर, मफलर, कन्टोप, कानपट्टी, शाल आदि गरम कपड़े बांटा करते थे। अब उनके दर्शन ही दुर्लभ हो गये हैं। शहर में नगर निगम प्रशासन द्वारा चौक-चौराहो पर रातों में व सुबह अलाव जलाने की परंपरा रही है। कुछ दिनों पहले निगम ने इक्का-दुक्का जगहों पर ऐसी व्यवस्था की भी थी तब ठंड कम थी। आज स्थिति यह है कि लोग ख़ासतौर से गरीबी झेल रहे लोग चौक-चौराहों पर निगम के अलाव खोजते हैं ताकि ठंड से अपनी जान बचा सकें। परिस्थितियों के मारे लोग यहां-वहां प्लास्टिक, रबर, काग़ज़ आदि का कचरा जलाकर जाड़े से राहत पाने की कोशिश करते हैं।

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