देवाधिदेव महादेव की पूजा-अर्चना ऐसे तो पूरे वर्ष अप्रतिम श्रद्धा व विश्वास से की जाती है, पर श्रावण मास शिव को विशेष रूप से प्रिय है। यही कारण है शिव की शक्ति देवी भवानी की भी विशेष पूजा-अर्चना श्रावण में की जाती है। सावन माह शिव-शक्ति उपासना का मंगलकारी योग उपस्थित करता है।
धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि जो सत्य है, वही सुंदर है और जो सत्य तथा सुंदर दोनों है, वही शिव है। भारत में भगवान शिव की पूजा-अर्चना उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक आदि अनादि काल से होती चली आ रही है। शिवशंकर की स्थापना और पूजा-अर्चना इतनी सहज और सामान्य है कि जन-जन के बीच में इनकी लोकप्रियता भी सर्वाधिक है।
भारत में पंच देवों की मान्यता पूर्ण ब्रह्म के रूप में है, जिसमें गणेश, शिव, शक्ति, विष्णु और सूर्य की गणना की जाती है। शिवशंकर का नाम न सिर्फ अंत:करण को शुद्ध करता है, वरन् ज्ञान प्रदान कर व्यक्ति को मुक्तिपद प्रदान करता है।
इस धरती पर उपस्थित तमाम तरह के जीवों- भूचर, जलचर और नभचर सभी के आराध्य देव देवाधिदेव भोलेनाथ हैं। वस्तुत: विविधता में एकता का शंखनाद भारतीय गरिमा का परिचायक है और शिवशंकर इसके मूर्त्त रूप हैं। धार्मिक और सांस्कृतिक परम्पराओं को संजोये श्रावण मास समन्वय का प्रतिमान स्थापित करने वाला मास है। नियम, निष्ठा, परहेज, उपवास व धार्मिकता का प्रत्यक्ष रूप श्रावण मास में चारों ओर देखने को मिलता है।
तीनों लोक के आराध्य देव महादेव शंकर का संपूर्ण स्वरूप योगमय है। प्रभु का यह अद्भुत स्वरूप योगानमिताय अर्थात् केवल योग के द्वारा ही संभव है। यही कारण है शिव शांत भी हैं और उग्र भी हैं। संपूर्ण सनातन देव के बीच शिव सबसे उच्च स्थान पर विराजमान हैं, यही कारण इन्हें ‘महादेव’ की संज्ञा से विभूषित किया गया। जन-जन के साथ शिव ऐसे रचे-बसे हैं कि लोक देवताओं में भी अग्रणी हैं।
सावन मास को पर्व-त्योहार का मास कहते हैं। इस मास में आषाढ़ी पर्व, मंगला गौरी व्रत,अशून्यशयन व्रत, हरतालिका व्रत, कजली तीज, हरियाली तीज, नाग पंचमी, रक्षाबंधन और श्रावणी सोमवार व्रत का विशिष्ट महत्त्व है। सावन में शिवालयों से लेकर द्वादश ज्योतिर्लिंग पर जलार्पण करने वाले की संख्या काफी बढ़ जाती है।
पुरातन काल से ही श्रावण में आध्यात्मिक यात्रा को विशेष महत्त्व दिया गया है। पर्वतीय क्षेत्र में, अरण्य में, सुनसान जगह में, नदी किनारे, समुद्र तट पर और ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों में विराजमान शिवालयों के दर्शन का सर्वाधिक उत्तम काल श्रावण ही माना जाता है। अपने देश में गंगोत्री से रामेश्वरम तक की कांवड़ यात्रा सर्वाधिक प्रसिद्ध है।यह सावन माह का प्रभाव है कि मनुष्य ही नहीं, पूरी धरती मन, वचन और कर्म से शिवमय हो जाती है। तभी तो मान्यता है कि सावन में शिव जी की आराधना करने वालों पर पूरे साल उनकी साक्षात कृपा बनी रहती है।