प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा शाही ईदगाह और कृष्ण जन्मभूमि विवाद में फैसला सुरक्षित रख लिया है. अब इस मामले में कोर्ट 24 अप्रैल को फैसला सुनाएगा. शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट की प्रबंध समिति और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड मथुरा मामले को श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से बहस पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया है.
यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट और अन्य की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है. बता दें कि भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की तरफ से मथुरा की सिविल जज की अदालत में सिविल वाद दायर कर 20 जुलाई 1973 के फैसले को रद्द करने और 13.37 एकड़ कटरा केशव देव की जमीन श्रीकृष्ण विराजमान के नाम घोषित किए जाने की मांग की गई. वादी का कहना था कि जमीन को लेकर दो पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर 1973 में दिया गया फैसला वादी पर लागू नहीं होगा क्योंकि वह इसमें पक्षकार नहीं था.
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की आपत्ति की सुनवाई करते हुए अदालत ने 30 सितंबर 2020 को सिविल वाद खारिज कर दिया, जिसके खिलाफ भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की तरफ से अपील दाखिल की गई. विपक्षी ने अपील की पोषणीयता पर आपत्ति की, जिला जज मथुरा की अदालत ने अर्जी मंजूर करते हुए अपील को पुनरीक्षण अर्जी में तब्दील कर दिया. पुनरीक्षण अर्जी पर पांच प्रश्न तय किए गए. 19 मई 2022 को जिला जज की अदालत ने सिविल जज के वाद खारिज करने के आदेश 30 सितंबर 2020 को रद्द कर दिया.
याची के वरिष्ठ वकील एसएफए नकवी का कहना है कि प्लेसेस आप वर्शिप एक्ट 1991 के तहत विवाद को लेकर सिविल वाद पोषणीय नहीं है. इस कानून में सभी पूजा स्थलों की 15 अगस्त 1947 की स्थिति में बदलाव पर रोक लगी है. उन्होंने रामजन्म भूमि विवाद केस के फैसले का हवाला दिया. दोनों पक्षों को सुनने और बहस पूरी होने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया था अब इसका फैसला 24 अप्रैल को सुनाया जाएगा.
बता दें काशी और मथुरा का विवाद भी कुछ-कुछ अयोध्या की तरह ही है. हिंदुओं का दावा है कि काशी और मथुरा में औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाकर वहां मस्जिद बनवाई थी. औरंगजेब ने 1669 में काशी में विश्वनाथ मंदिर तुड़वाया था और 1670 में मथुरा में भगवा केशवदेव का मंदिर तोड़ने का फरमान जारी किया था. इसके बाद काशी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद बना दी गई.