जाति प्रमाण पत्र संघर्ष मोर्चा,राजनांदगांव के पदाधिकारी बैठक में हुए शामिल
राजनांदगांव। भारतीय बौद्ध महासभा,(छ.ग.) के माध्यम से जाति प्रमाण पत्र की समस्या के समाधान के सुझाव के लियेकल 13 जनवरी को दोपहर 12 बजे गुड़ियारी बौद्ध विहार, रायपुर में सामाजिक स्तर पर बैठक रखी गयी थी। जिसमें प्रमुख मार्गदर्शक के रूप में सेवानिवृत्त न्यायधीश संजय शेंद्रे , रवि माहेश्वरी (अधिवक्ता, बिलासपुर हाईकोर्ट) टिकेश्वर कुर्रे (अधिवक्ता, जिला एवं सत्र न्यायालय, दुर्ग) एवं अधिवक्ता योगेश रावत उपस्थित थे। भारतीय बौद्ध महासभा के प्रदेश महासचिव भोजराज गौरखेड़े ने जाति प्रमाण पत्र की समस्या के समाधान के लिए समाज के पूर्व वरिष्ठो एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को याद कर,उनके द्वारा सामाजिक एवं कानूनी रूप से किए गए कार्यों से अवगत कराते हुए इसके समाधान के लिए निरंतर किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी गई।
जाति प्रमाण पत्र के कानूनी समाधान के लिए महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में राजनांदगांव के सामाजिक कार्यकर्ता दिवंगत अधिवक्ता नरेंद्र बंसोड़ जी को याद किया गया। सामाजिक कार्यकर्ता संतोष बोरकर जी के द्वारा जाति प्रमाण पत्र की समस्या एवं उसके समाधान के लिए केंद्र एवं राज्य शासन के द्वारा जाति प्रमाण पत्र के विषय में जारी किए गए परिपत्रो व पत्राचार के माध्यम से प्राप्त तथा विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों द्वारा पारित आदेशों की नियमानुसार एवं तथ्यात्मक जानकारी प्रदान की गई। जिसमें विधि न्याय और कंपनी कार्य मंत्रालय,भारत सरकार द्वारा राज्य पुनर्गठन से संबंधित केंद्रीय अधिसूचना दिनांक 21.12.2000 हेतु नियत तिथि 1 नवंबर 2000 अंकित है। माननीय उच्च न्यायालय, छत्तीसगढ़ (बिलासपुर) द्वारा पारित निर्णय दिनांक 04.04.2011 में वर्ष 1950 के अभिलेखों पर जोर दिए बिना अन्य विकल्पों पर विचार करते हुए विधिसम्मत उचित आदेश पारित करने कहा गया है। माननीय उच्च न्यायालय, उत्तराखण्ड (नैनीताल) ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा माधुरी पाटिल, एक्शन कमेटी, संजय कुमार सिंह, दूध नाथ प्रसाद, ज्योतिबाला आदि प्रकरणों पर पारित निर्णयों का अध्ययन करने के बाद अजय कुमार एवं अन्य बनाम उत्तराखण्ड शासन में आदेश / निर्णय दिनांक 17.08.2012 पारित कर राज्य पुनर्गठन तिथि 09 नवम्बर, 2000 को नियत तिथि माना है, जिसके अनुपालन में उत्तराखण्ड शासन ने परिपत्र दिनांक 02.04.2013 जारी कर प्रचलित नियमों को संशोधित कर विस्तृत निर्देश जारी किए है। इस महत्वपूर्ण जानकारी के आधार पर उत्तराखंड की तरह ही छत्तीसगढ़ शासन को भी जाति प्रमाण पत्र के लिए प्रचलित 2013 के नियमों में आवश्यक संशोधन कर जाति प्रमाण पत्र के लिए 1950 के पूर्व निवास के दस्तावेजों की मांग को खत्म करना चाहिए।छत्तीसगढ़ राज्य गठन की तिथि 1 नवंबर 2000 को और इस से पूर्व 15 या 20 वर्षों से वर्तमान छत्तीसगढ़ की भौगालिक सीमा में निरंतर व स्थाई निवासरत व्यक्ति को जाति प्रमाण पत्र जारी कर आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए।
इस बैठक में जाति प्रमाण पत्र संघर्ष मोर्चा,राजनांदगांव के पदाधिकारी भी प्रमुख रूप से शामिल हुए। जाति प्रमाण पत्र संघर्ष मोर्चा,राजनांदगांव के संतोष बोरकर एवं राजकुमार बारमाटे ने भी क्रमशः अपने सुझाव बैठक में रखे। जाति प्रमाण पत्र संघर्ष मोर्चा,राजनांदगांव के जिला अध्यक्ष संतोष बोरकर ने जाति प्रमाण पत्र की समस्या के समाधान के लिए शासन को अवगत कराने के लिए जुलाई 2022 में किए गए धरना प्रदर्शन
की जानकारी देते हुए वर्तमान में जाति प्रमाण पत्र के समाधान के लिए समाज को संगठित होकर कार्य करने की आवश्यकता बताई।
जाति प्रमाण पत्र संघर्ष मोर्चा,राजनांदगांव के जिला उपाध्यक्ष राजकुमार बारमाटे ने जाति प्रमाण पत्र के समाधान के लिए प्रदेश भर के सामाजिक लोगों को संगठित होकर प्रदेश स्तरीय धरना प्रदर्शन कर शासन को 2013 के नियमों में संशोधन के लिए अवगत कराने का सुझाव दिया।इस बैठक में भोजराज गौरखेड़े, प्रमोद वासनिक,संतोष बोरकर,राजकुमार बारमाटे,
शेखर बागड़े,दिनेश मेश्राम,निलेश ठावरे, करुणा वासनिक, चंद्रशेखर रामटेके एवं पीयूष उके मुख्य रूप से उपस्थित थे।