बिलकिस बानो केस के सभी 11 दोषियों की सजा माफी को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था. इसके बाद 2 दोषियों ने इस फैसले को चुनौती दी थी जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से ही इनकार कर दिया. दोषियों ने अब अपनी याचिका वापस ले ली है. इस केस में दोषी भघवानदास शाह और राधेश्याम के पास अब भी फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन दाखिल करने का विकल्प है.
दोनों दोषियों ने इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और तर्क दिया था कि समान जजों की 2 बेंचों ने गुजरात सरकार के फैसले पर अलग-अलग रुख अपनाया है. दोषियों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ही एक बेंच ने महाराष्ट्र की सरकार को उपयुक्त माना था और दूसरी ने गुजरात सरकार को. ऐसे में स्पष्ट करना चाहिए कि किस सरकार का फैसला उपयुक्त होगा.
दोषियों ने अपनी याचिका में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को स्पष्ट करना चाहिए कि समान जजों की बेंच द्वारा दिए गए 2 विपरीत फैसलों में से कौन सा लागू किया जाएगा. याचिका में कहा गया था कि फैसला विरोधाभासी है और इसलिए इसे बड़ी बेंच के पास भेजा जाना चाहिए. इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से साफ इनकार कर दिया. इसके बाद दोषियों ने अपनी याचिका वापस ले ली.
इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के फैसले को पलट दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के साथ भी धोखाधड़ी की गई है. गुजरात सरकार को दोषियों को माफी देने का अधिकार नहीं था. यह अधिकार महाराष्ट्र सरकार के पास था. कोर्ट ने कहा था कि भले ही घटना गुजरात की है लेकिन इसकी पूरी सुनवाई महाराष्ट्र में हुई थी. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सभी दोषियों ने सरेंडर कर दिया था और उन्हें दोबारा जेल जाना पड़ा.
क्या है बिलकिस बानो केस
गुजरात दंगों के वक्त 3 मार्च 2002 को दाहोद जिले के रंधिकपुर गांव में बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप किया गया था और उनके परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी गई थी. उस वक्त बिलकिस बानो गर्भवती थीं. इस केस में राधेश्याम शाही, जसवंत चतुरभाई नाई, बकाभाई वदानिया, राजीवभाई सोनी, केशुभाई वदानिया, शैलेश, रमेशभाई चौहान, बिपिन चंद्र जोशी, मितेश भट्ट, प्रदीप मोढिया और गोविंदभाई नाई के खिलाफ केस दर्ज हुआ था.
सभी आरोपी 2004 में गिरफ्तार हुए. पहले अहमदाबाद कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई लेकिन बिलकिस बानो ने कहा कि यहां गवाहों को धमकाया जा रहा है और सबूतों से छेड़छाड़ की कोशिश हो रही है. इसके बाद केस को मुंबई ट्रांसफर कर दिया गया. साल 2008 में 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई था. 7 आरोपियों को बरी कर दिया गया था वहीं एक की मौत हो गई थी. 2022 में गुजरात सरकार ने 1992 की माफी नीति के मुताबिक उन्हें गोधरा की उप-जेल से रिहा कर दिया. इसके बाद बिलकिस बानो ने इस फैसले को चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के फैसले को पलट दिया.