राजनांदगांव (दैनिक पहुना)। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने आज यहां कहा कि आपके भीतर सालों से पड़े धूल को बाहर निकालें। उन्होंने कहा कि जिस तरह काफी समय से बंद पड़े मकान में अपने आप ही धूल भर जाता है। ठीक इसी तरह हमारे भीतर भी धूल भर गया है। इसे हमें बाहर निकालना है तो हमें चित्त को शांत कर साधना करनी होगी। नमो उग्र साधना है क्योंकि नमना सामान्य व्यक्ति के बस की बात नहीं है। इसे यदि हम सामान्य मानते हैं तो सामान्य प्रभाव पड़ता है और विशिष्ट मानते हैं तो विशिष्ट प्रभाव पड़ता है।
समता भवन में आज अपने नियमित प्रवचन के दौरान जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि आप चिंता छोड़ पात्र बनकर साधना करें। हमारे ऊपर आपत्ति आती है तो हम भगवान की शरण में जाते हैं। हमारे मुंह से भगवान शरणम निकलता है किंतु यह पूरे मन से नहीं निकलता। उन्होंने कहा कि जब तक चित्त में भाव नहीं लगेगा तब तक आपका अनुरोध असरकारी नहीं होगा। उन्होंने कहा कि जब उनके नाम से हमें इतना कुछ मिल जाता है तो फिर सिद्धि में क्या स्थिति होगी। सिद्धि से पहले शुद्ध होना आवश्यक है। हम शुद्ध होंगे तभी सिद्धि प्राप्त कर पाएंगे। हमारे जीवन में इतने सारे दाग लगे हैं जिसे साफ करना होगा।
मुनि श्री ने फरमाया कि व्यक्ति के मन में उत्साह तब जागता है जब वह शत्रु को देखता है। शत्रु को देखकर उसके भीतर के भाव उत्पन्न होते हैं कि हमें इस शत्रु को हराना है। व्यक्ति को संसार का सुख सुहाता है किंतु सिद्धि का सुख नहीं सुहाता। हम एकांत में रहने के आदि नहीं हैं इसलिए एकांत का सुख हमें नजर नहीं आता। उन्होंने कहा कि हर मन की चाह होती है कि वह सुख पाए। उनको दिखने वाला सुख पसंद आता है। भीतर का सुख यदि मिल जाए तो इसकी बात ही निराली है। हमें सिर्फ एक ही सुख चाहिए और वह है चित्त का सुख। स्वयं के चित्त को शुद्ध करें और उस की शांति के लिए साधना करें तो जीवन धन्य हो जाएगा।