नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को मौखिक रूप से कहा कि देश को ऐसे मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) की जरूरत है, जो प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई भी कर सके। न्यायालय ने केंद्र सरकार को पिछले सप्ताह नियुक्त चुनाव आयुक्त (ईसी)के चयन की प्रणाली भी बताने को कहा। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की अध्यक्षता करते हुए न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ ने कहा, हमें एक ऐसे सीईसी की जरूरत है जो एक पीएम के खिलाफ भी कार्रवाई कर सके। पीठ में शामिल जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सी.टी. रविकुमार ने कहा, उदाहरण के लिए मान लीजिए कि प्रधान मंत्री के खिलाफ कुछ आरोप हैं और सीईसी को कार्रवाई करनी है, लेकिन सीईसी कमजोर है और कार्रवाई नहीं करता है। पीठ ने केंद्र के वकील से सवाल किया कि क्या यह व्यवस्था का पूरी तरह टूटना नहीं है। सीईसी को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त माना जाता है और स्वतंत्र होना चाहिए। पीठ ने कहा, ये ऐसे पहलू हैं जिन पर आपको (केंद्र के वकील) को ध्यान देना चाहिए कि हमें सीईसी के चयन के लिए एक स्वतंत्र बड़े निकाय की आवश्यकता क्यों है, न कि केवल मंत्रिमंडल की।
पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि समितियां कहती हैं कि बदलाव की सख्त जरूरत है और राजनेता भी इसकी मांग करते हैं, लेकिन कुछ नहीं होता। केंद्र का प्रतिनिधित्व अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह कर रहे थे। पीठ ने केंद्र के वकील से चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में अपनाई गई प्रक्रिया को दिखाने के लिए भी कहा। पूर्व नौकरशाह अरुण गोयल ने 19 नवंबर को इस पद पर नियुक्त होने के बाद सोमवार को चुनाव आयुक्त का पदभार ग्रहण किया। इस साल मई से सुशील चंद्रा के सेवानिवृत्त होने के बाद तीन सदस्यीय आयोग में एक चुनाव आयुक्त का पद खाली पड़ा था।
सुनवाई के दौरान एटॉर्नी जनरल ने कहा कि परंपरा के मुताबिक चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के समय राज्य और केंद्र सरकार के सभी वरिष्ठ नौकरशाहों और अधिकारियों को ध्यान में रखा जाता है और इसका ईमानदारी से पालन किया गया है। एजी ने कहा कि नियुक्ति परंपरा के आधार पर की जाती है और सीईसी की कोई अलग नियुक्ति प्रक्रिया नहीं है। न्यायमूर्ति रस्तोगी ने कहा कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में एक पारदर्शी तंत्र होना चाहिए और यह तंत्र ऐसा होना चाहिए कि लोग इस पर सवाल न उठाएं।
उन्होंने कहा कि, आपने अभी दो दिन पहले किसी को ईसी के रूप में नियुक्त किया है, हमें उनकी नियुक्ति में अपनाई गई प्रणाली को बताएं। इस मौके पर एजी ने जवाब दिया, तो क्या हम यह कह रहे हैं कि मंत्रिपरिषद में विश्वास नहीं है? इस पर न्यायमूर्ति रस्तोगी ने कहा, नहीं, हम अपनी संतुष्टि के लिए कह रहे हैं कि दो दिन पहले नियुक्त ईसी के बारे में अपनाई गई प्रणाली हमें दिखाएं। एजी ने जवाब दिया कि उन्होंने पहले ही बताया है कि कैसे एक परंपरा का पालन किया जाता है और नियुक्तियां वरिष्ठता के आधार पर की जाती हैं। एजी ने कहा, यह चुनने की प्रणाली नहीं है, बल्कि एक प्रक्रिया है। पीठ ने कहा कि वह समझती है कि सीईसी की नियुक्ति ईसी के बीच से की जाती है, लेकिन फिर इसका कोई आधार नहीं है और केंद्र को केवल सिविल सेवकों तक ही सीमित क्यों रखा गया है? एजी ने कहा कि यह पूरी तरह से अलग बहस है और क्या हम आवेदकों के एक राष्ट्रीय पूल में ला सकते हैं, यह एक बड़ी बहस है। उन्होंने कहा कि सिस्टम में एक अंतर्निहित गारंटी भी है, जब भी राष्ट्रपति सुझाव से संतुष्ट नहीं होते हैं तो वह कार्रवाई कर सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत सीईसी की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। पिछले हफ्ते केंद्र ने सीईसी और ईसी के चयन के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग का विरोध किया था।
शीर्ष अदालत ने अक्टूबर 2018 में, सीईसी और ईसी के चयन के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली एक जनहित याचिका को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया है।