जासूसी हुई या नहीं, इसपर सरकार ने नहीं किया कोई खंडन; इसलिए जांच जरूरी

पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आदेश जारी कर दिया है। इसके तहत शीर्ष अदालत ने तीन सदस्यीय विशेषज्ञ कमेटी का गठन कर दिया है। इसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आरवी रवींद्रन करेंगे। इसके अलावा पूर्व आईपीएस अधिकारी आलोक जोशी और डॉ. संदीप ओबेरॉय(तकनीकी विशेषज्ञ) कमेटी के अन्य सदस्य होंगे।। सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी को आरोपों की पूरी तरह से जांच करने और अदालत के समक्ष रिपोर्ट पेश करने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पेगासस की सच्चाई की जांच के लिए कमेटी का गठन किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निजता के अधिकार के उल्लंघन की जांच होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत के नागरिकों की निगरानी में विदेशी एजेंसी की संलिप्तता एक गंभीर चिंता का विषय है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे में केंद्र द्वारा कोई विशेष खंडन नहीं किया गया है, इस प्रकार हमारे पास याचिकाकर्ता की दलीलों को प्रथम दृष्टया स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है और हम एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त करते हैं जिसका कार्य सर्वोच्च न्यायालय द्वारा देखा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में केंद्र सरकार द्वारा अपने बचाव में राष्ट्रीय सुरक्षा के तर्क को उठाने पर आपत्ति जताई। शीर्ष अदालत ने कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को उठाकर राज्य को हर बार राहत नहीं मिल सकती है। केंद्र को यहां अपने रुख को सही ठहराना चाहिए न कि अदालत को मूकदर्शक बने रहने के लिए कहना चाहिए। मालूम हो कि केंद्र सरकार ने इस मामले में यह कहते हुए विस्तृत हलफनामा दाखिल करने से इनकार कर दिया था कि यह मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह सूचना प्रौद्योगिकी का युग है और यह हमारे दैनिक जीवन के लिए महत्वपूर्ण है, साथ ही नागरिकों की निजता की रक्षा करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। जब निजता के अधिकार पर प्रतिबंध लगाया जाता हैं तो उसे संवैधानिक सुरक्षा उपायों से बंधा होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि निजता पर प्रतिबंध केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में आतंकवादी गतिविधियों की रोकथाम के लिए लगाया जा सकता है।

शीर्ष अदालत ने कहा है कि हम सूचना के युग में रहते हैं। हमें समझना चाहिए कि प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण है, गोपनीयता के अधिकार की रक्षा करना महत्वपूर्ण है। न केवल पत्रकार आदि बल्कि सभी नागरिकों के लिए गोपनीयता महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निगरानी, लोगों के अधिकार व स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता को प्रभावित करती है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की निगरानी तकनीक से प्रेस के अधिकार पर प्रभाव पड़ सकता है।

मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने यह आदेश जारी किया। इस बेंच में मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली शामिल थे। वहीं पेगासस जासूसी कांड की जांच को लेकर 12 याचिकाएं दायर की गई थीं। इनमें  वकील एमएल शर्मा, माकपा सांसद जॉन ब्रिटास, पत्रकार एन राम, पूर्व आईआईएम प्रोफेसर जगदीप चोककर, नरेंद्र मिश्रा, परंजॉय गुहा ठाकुरता, रूपेश कुमार सिंह, एसएनएम आब्दी, पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया का नाम शामिल है।

बता दें कि इससे पहले पेगासस जासूसी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 13 सितंबर को सुनवाई हुई थी। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने साफ कर दिया था कि वह इस मामले में हलफनामा दाखिल नहीं करने जा रही है। सरकार ने कहा था कि यह सार्वजनिक चर्चा का विषय नहीं है, इसलिए हलफनामा दाखिल नहीं कर सकते। लेकिन वह जासूसी के आरोपों की जांच के लिए पैनल गठित करने के लिए राजी है।

कांग्रेस ने कथित पेगासस जासूसी प्रकरण की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाने संबंधी फैसले का स्वागत करते हुए बुधवार को कहा कि ‘सत्यमेव जयते।’पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया, ‘कायर फासीवादियों की आखिरी शरण छद्म राष्ट्रवाद है। पेगासस के दुरुपयोग की जांच के लिए विशेषज्ञ समिति गठित करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं।मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर ध्यान भटकाने के शर्मनाक प्रयास किए। सत्यमेव जयते।’

 

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