बिलासपुर। दिव्यांगजनों के रिकार्ड सिविल सर्जन कार्यालय में नहीं होने को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया है. इस लापरवाही के लिए कलेक्टर और सिविल सर्जन को आदिवासी युवकों को एक-एक लाख रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया है. 90 दिनों के भीतर भुगतान नहीं करने पर याचिका दायर करने की अवधि से 12 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज भी देना होगा.
जानकारी के अनुसार, विजय कुमार यादव व महेश राम की याचिका पर जस्टिस दीपक तिवारी की सिंगल बेंच में सुनवाई हुई. याचिकाकर्ताओं के मुताबिक, राष्ट्रीय खनिज विकास निगम लिमिटेड (एनएमडीसी) ने 29 मई 2015 को विविध परिचारक (प्रशिक्षु) के पद के लिए समूह डी में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए विशेष भर्ती अभियान चलाया गया था. याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रस्तुत विकलांगता प्रमाण पत्र की जांच एनएमडीसी द्वारा जांच की गई. जांच में पता चला कि याचिकाकर्ताओं के प्रमाण पत्र संबंधित मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रमाणित नहीं है.
एनएमडीसी ने इस पर सिविल सर्जन कार्यालय से सत्यापन के लिए एक समिति का गठन किया. जांच के दौरान सिविल सर्जन दफ्तर ने एनएमडीसी को सूचित किया कि विकलांगता प्रमाण पत्र के सत्यापन रिकार्ड उनके कार्यालय में उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए इसे सत्यापित नहीं किया जा सकता है. प्रमाण पत्र सत्यापित नहीं होने पर एनएमडीसी ने दोनों युवकों को पात्रता सूची से बाहर कर दिया. इस पर युवकों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.