नई दिल्लीः स्मारकों को फिर से परिभाषित करने और संरक्षित स्मारकों के आसपास के क्षेत्र के उपयोग को युक्तिसंगत बनाने के उद्देश्य से, केंद्र सरकार बजट सत्र के दूसरे चरण में प्राचीन स्मारक, पुरातत्व स्थल एवं अवशेष (संशोधन) विधेयक को फिर से पेश करने की तैयारी में है. दिल्ली में एक कार्यक्रम के इतर पत्रकारों से बात करते हुए, केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा कि AMASR (Amendment) Act के मसौदे पर चर्चा अंतिम चरण में है और कानून अगले महीने की शुरुआत में संसद में पेश किया जाएगा. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, आगामी संशोधन स्मारकों की एक नई परिभाषा देने की कोशिश करेगा. वर्तमान में, एक स्मारक को कम से कम 100 वर्ष पुराना होना चाहिए.
सूत्रों का कहना है कि सरकार इस बेंचमार्क को बदलने पर विचार कर रही है, क्योंकि भारत में प्राचीन स्मारकों का खजाना है, जबकि अधिकांश ‘100 साल पुराने स्मारक’ अंग्रेजों के समय के हैं. यह सरकार के ’औपनिवेशिक अतीत’ को पीछे छोड़ने की इच्छा के अनुरूप होगा, जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी अमृत काल या स्वतंत्रता के 75 वर्षों को चिह्नित करने के लिए विभिन्न मंचों पर इसके बारे में बात करते रहे हैं कि हमें ‘गुलामी की मानसिकता’ से बाहर आना होगा. देश की भावना के अनुसार ‘राष्ट्रीय महत्व’ को फिर से परिभाषित करने की भी संभावना है, क्योंकि अधिकांश केंद्रीय संरक्षित स्मारकों को ब्रिटिश शासन के दौरान ‘राष्ट्रीय महत्व’ की सूची में शामिल किया गया था, तब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की स्थापना भी नहीं हुई थी.
कुछ स्मारकों का ‘राष्ट्रीय महत्व’ का दर्जा समाप्त हो सकता है
केंद्र द्वारा संरक्षित स्मारकों की वर्तमान में कुल संख्या 3695 है. प्राचीन स्मारक, पुरातत्व स्थल एवं अवशेष (संशोधन) विधेयक को कानूनी मान्यता मिलने के बाद इनमें से कुछ स्मारकों का ‘राष्ट्रीय महत्व’ का दर्जा समाप्त हो सकता है. AMASR Act केवल एक स्मारक को गैर-अधिसूचित करने का प्रावधान करता है, यदि यह राष्ट्रीय महत्व का नहीं रह जाता है. हाल ही में, एएसआई ने एक संसदीय समिति के सामने 24 स्मारकों के गुम होने और 26 अन्य के नुकसान के बारे में स्वीकारोक्ति की थी. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसका कारण शहरीकरण और डैम निर्माण के कारण बनने वाले डूब क्षेत्रों को बताया था. एएमएएसआर अधिनियम कुछ शर्तों को छोड़कर संरक्षित स्मारकों के आसपास 100 मीटर तक निर्माण पर भी प्रतिबंध लगाता है. निषिद्ध क्षेत्र से परे 200 मीटर के दायरे तक के क्षेत्र को एक विनियमित क्षेत्र के रूप में सीमांकित किया गया है.
देश भर में सभी 3,695 संरक्षित स्मारकों के मामले में इन प्रतिबंधित और विनियमित क्षेत्रों में आम तौर पर किसी भी निर्माण कार्य या संबंधित गतिविधि की अनुमति नहीं है, जब तक कि राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (National Authority Monument) से एक विशिष्ट अनुमोदन नहीं लिया जाता है. ऐसी महसूस किया जाता है कि AMASR Act स्मारकों के पास एक बहुत बड़े क्षेत्र को प्रतिबंधित करता है, जिनका अच्छा उपयोग किया जा सकता है, विशेष रूप से विकासात्मक और बुनियादी ढांचे से संबंधित कार्यों के मामले में. एक्ट में संशोधन इन प्रतिबंधित क्षेत्रों में कुछ छूट देने से संबंधित होंगे, विशेष रूप से छोटे और कम महत्वपूर्ण स्मारकों जैसे मूर्तियों, समाधियों या कब्रों और तोपों आदि के मामले में, जिनकी सुरक्षा के लिए उनके आसपास इतने बड़े क्षेत्र को प्रतिबंधित करने की आवश्यकता नहीं है.
यूनेस्को द्वारा चिन्हित स्मारकों के मामले में पुराना नियम लागू रहेगा!
हालांकि, यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल स्मारकों के मामले में (भारत में उनमें से 40 हैं, जिनमें आगरा में ताजमहल, गुजरात में धोलावीरा, तेलंगाना में रामप्पा मंदिरऔर दिल्ली में लाल किला और कुतुब मीनार परिसर शामिल हैं) ये प्रतिबंध लागू रह सकते हैं, क्योंकि इनके आसपास कोई भी निर्माण कार्य इन ऐतिहासिक स्मारकों को प्रभावित कर सकते हैं. यूनेस्को आमतौर पर सभी विश्व विरासत स्थलों के मामले में इस तरह के प्रतिबंधों का अनुपालन करने के लिए प्रोत्साहित करता रहा है. आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि सरकार सभी स्मारकों के लिए इन प्रतिबंधों में एकरूपता को समाप्त कर सकती है.