बिलासपुर। तलाक के एक मामले में हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा है कि पति के अपने माता-पिता से अलग करने के बाद भी पत्नी का व्यवहार ठीक नहीं है, तो यह मानसिक क्रूरता है. कोर्ट ने तलाक के आवेदन को मंजूर कर फैमिली कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए पति को तलाक का हकदार माना है. मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस अग्रवाल की बेंच में हुई.
बता दें कि कबीरधाम में रहने वाले युवक की शादी वहीं की युवती के साथ फरवरी 2002 में हुई थी. शादी के बाद उनकी दो बेटियां हुईं. पति का आरोप है कि पत्नी छोटी-छोटी बातों को लेकर विवाद कर बुजुर्ग माता-पिता के साथ अभद्र व्यवहार करती थी, साथ ही अपनी बातें मनवाने के लिए नाराज होकर पति से दुर्व्यवहार करती थी. कुछ साल बाद वह पति पर सास-ससुर से अलग रहने के लिए दबाव बनाने लगी.
सामाजिक बैठक के बाद वे दिसंबर 2013 से पत्नी और बेटियों के साथ दूसरी जगह रहने लगे, लेकिन अलग जगह रहने के बाद भी पत्नी का व्यवहार नहीं बदला. पत्नी की हरकतों से परेशान होकर पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए परिवाद लगाया. जिसमें कहा गया कि दिसंबर 2013 से वह पत्नी व बच्चों के साथ अलग रह रहा है. यहां तक पत्नी ने सरकारी नौकरी करने वाले माता-पिता व भाई के खिलाफ थाने में झूठा केस भी दर्ज करा दिया. अब उसकी पत्नी अपनी बेटियों को लेकर अलग रह रही है, और बेटियों से मिलने भी नहीं दे रही है.
पति के तर्कों को सुने बिना फैमिली कोर्ट ने 15 फरवरी 2016 करे पत्नी के अनुपस्थित रहने के कारण परिवाद को खारिज कर दिया, तो पति ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील की. जिसमें कहा कि वह अपनी पत्नी से 10 साल से अलग रह रहा है. वह हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के तहत वह तलाक का हकदार है. कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद फैमिली कोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए पति को तलाक का हकदार माना है.
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