ग्लोबल वार्मिंग भारत के साथ-साथ पूरे विश्व के लिए खतरनाक है. दिन-प्रतिदिन जलवायु परिवर्तन होने के साथ-साथ इसके बढ़ते प्रभाव का असर कृषि क्षेत्र में भी देखा जा रहा है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग के कारण वर्ष 2080 तक देश में गेहूं की पैदावार में 40 प्रतिशत तक की कमी होने का अनुमान लगाया है. जलवायु परिवर्तन के कारण मौसमों का महीने भी आगे खिसकने लगा है. नवंबर में ठंड पड़ना शुरू हो जाती थी. इस बार नवंबर का पहला सप्ताह गुजरने के बावजूद उतनी ठंड नहीं है. बारिश भी तय समय पर नहीं हुई. बेमौसम बारिश ने किसानों की करोड़ों रुपये की फसलों को बर्बाद कर दिया. ग्लोबल वार्मिंग से देश में गेहूं, धान, मक्का का उत्पादन तेजी से घट जाएगा.
इसरो (ISRO) के देहरादून स्थित सेंटर इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रिमोट सेंसिंग (IIRS) के वैज्ञानिकों ने हाल ही में ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) पर स्टडी की. इस स्टडी में सामने आया कि ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ता असर फसल उत्पादन क्षमता को प्रभावित कर रहा है. आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग यदि इसी तेजी से बढ़ती रही तो साल 2080 तक भारत में गेहूं की पैदावार में 40 प्रतिशत तक की कमी आने की संभावना है. इसके अलावा धान और मक्का की फसल में भी कमी देखी जा सकती है. ISRO की इस स्टडी के बाद यदि देश में ये स्थिति आई तो डिमांड और सप्लाई के बीच खतरनाक असंतुलन पैदा हो जाएगा. जिससे आम जनमानस का जीवन प्रभावित होगा.
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि की 18% हिस्सेदारी
IITM के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने कहा कि इन हीटवेव्स (heatwave) के पीछे एकमात्र कारण ग्लोबल वार्मिंग है. कोल ने सात दशकों के डेटा के माध्यम से निष्कर्ष निकाला कि हीटवेव की गंभीरता और आवृत्ति सीधे वार्मिंग ग्लोब से संबंधित थी. कई अध्ययनों के बाद अब भविष्यवाणी की है कि बारिश के पैटर्न में बड़े बदलाव, शुरुआती गर्मी में गर्म हवाएं देश के चावल और गेहूं के उत्पादन को खतरे में डाल सकती हैं. इसकी वजह से अनाज में कमी आ सकती है. दूसरा प्रभाव इसका ये है कि भारत में कृषि आधी आबादी को रोजगार देती है और भारत की अर्थव्यवस्था में 18% की हिस्सेदार है.
बदल रहा मानसून का समय
कोल ने हाल ही में किए गए एक ऐतिहासिक अध्ययन में हिंद महासागर के ऊपर बढ़ते तापमान, या महासागरीय गर्मी की लहरों का भी उल्लेख किया गया है. जो मॉनसून के सर्किल को बदल रहा है. 2022 दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की बिगड़ी स्थिति के कारण बारिश काफी देर से हुई. इसकी वजह से चावल की बुवाई में चार फीसदी की कमी आई. सरकार ने संभावित कमी और उच्च अनाज मूल्य मुद्रास्फीति से निपटने के लिए विदेशी शिपमेंट पर प्रतिबंध लगा दिया है.