बिलासपुर । छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने कहा है कि एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवास करने वाले व्यक्ति अपनी जाति की स्थिति को अपने साथ नहीं ले जा सकते, भले ही उनकी जाति को दोनों राज्यों में अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त हो। जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की बेंच ने कहा है कि किसी जाति को अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग ( ओबीसी ) के रूप में मान्यता देना सीधे तौर पर उस जाति द्वारा अपने गृह राज्य में सामना किए जाने वाले सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन से संबंधित है। यह पिछड़ापन जरूरी नहीं कि उस राज्य में भी मौजूद हो, जहां कोई व्यक्ति प्रवास करता है। विचाराधीन मामले में याचिकाकर्ता राजस्थान से पलायन कर आए थे और उन्होंने राजस्थान में मान्यता प्राप्त अपनी भील जाति के आधार पर छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांगा था। न्यायालय ने हाईपावर जाति छानबीन समिति के निष्कर्षों को बरकरार रखा, जिसने पाया कि याचिकाकर्ता नायक समुदाय से संबंधित थे, न कि भील जनजाति से। समिति की जांच से पता चला कि याचिकाकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति का दर्जा पाने के लिए जाली दस्तावेज उपलब्ध कराए थे।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को आरक्षित श्रेणी के तहत दिए गए जाति प्रमाण पत्र और लाभ को रद्द करने के समिति के आदेश को चुनौती देने वाली रिट याचिका को खारिज कर दिया। प्रकरण के मुताबिक 10 अक्टूबर 2007 को विकास कुमार गोंड, हृदय राठिया और अजय कुमार अग्रवाल ने बिलासपुर के कलेक्टर के पास शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि जोधपुर, राजस्थान के शंकर लाल डगला (अब रिटायर्ड) ने जाली जाति प्रमाण पत्र का इस्तेमाल कर भील आदिवासी समुदाय का सदस्य होने का झूठा दावा किया। इस प्रमाण पत्र से उन्हें व्याख्याता और बाद में डिप्टी कलेक्टर के रूप में रोजगार मिला। साथ ही अपने बेटे के लिए पेट्रोल पंप डीलरशिप ली। याचिकाकर्ताओं ने अपने जाति प्रमाण पत्र और डीलरशिप को रद्द करने को चुनौती दी। सतर्कता निरीक्षक की जांच ने उनकी भील जनजाति की स्थिति को सत्यापित किया, लेकिन अन्य साक्ष्यों के आधार पर 10 जनवरी, 2011 को प्रमाण पत्र रद्द कर दिया गया।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि भील और नायक जातियों को 1979 के राजपत्र अधिसूचना के अनुसार राजस्थान में अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है और उन्हें पहले राजस्व बोर्ड द्वारा आदिवासी के रूप में मान्यता दी गई है। हाईकोर्ट ने 30 जनवरी 2011 को अंतरिम राहत देते हुए याचिकाकर्ताओं को पेट्रोल पंप संचालन जारी रखने की अनुमति दी थी। हस्तक्षेपकर्ताओं ने इस आधार पर इस आदेश को चुनौती देते हुए आवेदन लगाया कि पेट्रोल पंप डीलरशिप के उनके अपने अवसरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
राज्य सहित प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि जाति प्रमाण पत्र जाली थे और कहा कि याचिकाकर्ता के पैतृक अभिलेखों में विसंगतियों का खुलासा करते हुए जांच की गई है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सतर्कता निरीक्षक की रिपोर्ट त्रुटिपूर्ण थी और उनकी जाति और आदिवासी होने की स्थिति वैध थी। उन्होंने इस संबंध में बीर सिंह बनाम दिल्ली जल बोर्ड के सर्वोच्च न्यायालय के मामले का उद्धरण दिया कि राज्यों के बीच प्रवास करने वाले अनुसूचित जनजाति के सदस्य अपनी स्थिति बनाए रखते हैं। न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता राजस्थान से पलायन कर छत्तीसगढ़ में आरक्षण का लाभ नहीं ले सकते। कोर्ट ने हाई पावर कमेटी द्वारा जाति प्रमाण पत्र और डीलरशिप रद्द करने के निर्णय को सही ठहराया। न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि भील और नायक को छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।