37 साल पहले रिश्वत के बाद सस्पेंड हुआ था TTE, मरने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला

Supreme Court Decision On 37 Years Old Bribery Case: 37 साल पुराने 50 रुपये की रिश्वत मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने उस रेलवे टिकट परीक्षक (TTE) को बरी कर दिया, जिस पर 37 साल पहले 50 रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगा था। देश के शीर्ष न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि दिवंगत अधिकारी VM सौदागर निर्दोष थे। उनके परिवार को पेंशन और बाकी सेवा लाभ तीन महीने के भीतर दिए जाएं।

मई 1988 में दादर–नागपुर एक्सप्रेस में ड्यूटी पर तैनात TTE VM सौदागर पर रेलवे सतर्कता टीम ने आरोप लगाया था कि उन्होंने तीन यात्रियों से सीट आवंटन के लिए पचास रुपये की रिश्वत मांगी है। विभाग ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की और 1996 में उन्हें नौकरी से हटा दिया। यह वही क्षण था, जब एक ईमानदार अधिकारी की जिंदगी पूरी तरह बदल गई।

बर्खास्तगी के बाद सौदागर ने अपना पक्ष केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में रखा. वर्ष 2002 में ट्रिब्यूनल ने कहा कि रिश्वत के आरोपों को साबित करने वाले कोई ठोस सबूत नहीं हैं और उनकी सेवा बहाल की जानी चाहिए। हालांकि रेलवे ने इस आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी। मामला वर्षों तक वहीं अटका रहा और इस बीच सौदागर का निधन हो गया। परिवार ने फिर भी हार नहीं मानी और न्याय की उम्मीद में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

सुप्रीम कोर्ट का रुख साक्ष्य नहीं तो अपराध नहीं

सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने विस्तार से रिकॉर्ड की समीक्षा की और पाया कि जांच अधूरी थी। यात्रियों के बयान पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि उनमें से एक की गवाही ली ही नहीं गई और बाकी दो ने भी किसी रिश्वत की पुष्टि नहीं की। अदालत ने यह भी माना कि सौदागर ने यात्रियों से सिर्फ यह कहा था कि वे अन्य कोचों की जांच पूरी करने के बाद उनकी राशि लौटाएंगे, जो रेलवे की सामान्य प्रक्रिया है. इस आधार पर न्यायालय ने कहा कि बर्खास्तगी अनुचित और अवैधानिक थी।

परिवार को मिलेगा पूरा हक

फैसले में यह स्पष्ट किया गया कि सौदागर के उत्तराधिकारियों को सभी लंबित वित्तीय लाभ, पेंशन और ग्रेच्युटी तुरंत दी जानी चाहिए। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जब किसी कर्मचारी के खिलाफ ठोस सबूत न हों तो केवल संदेह के आधार पर की गई कार्रवाई न्याय नहीं अन्याय है।

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