एनसीईआरटी ने किताबों का ऐसा क्या नाम रख दिया कि होने लगा विरोध, जानें पूरा मामला…

NCERT Books Controversy: नई शिक्षा नीति 2020 (National Education Policy 2020) में तीन-भाषा नीति को लेकर तमिलनाडु का केंद्र सरकार के साथ टकराव अभी थमा भी नहीं था कि एनसीईआरटी (NCERT) की किताबों को लेकर विवाद शुरू हो गया है। तमिलनाडु कुछ राज्यों में एनसीईआरटी की किताबों के नाम हिंदी और अंग्रेजी मीडियम के लिए एक जैसे रखे जाने का विरोध किया है। केरल और तमिलनाडु ने इसे ‘हिंदी थोपने’ और भाषाई विविधता पर हमला बताया है।

दरअसल, नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) ने हाल ही में अंग्रेजी माध्यम की पाठ्यपुस्तकों को हिंदी शीर्षक देने का फैसला लिय। इस कदम को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (NCF) 2023 के तहत लागू किया गया है, लेकिन कुछ राज्यों में इसे लेकर विवाद खड़ा हो गया।

NCERT का क्या कहना है?
मामले में किताबों के टाइटल हिंदी में दिए जाने पर एनसीईआरटी ने तर्क दिया है कि ये किताबें सभी 22 अनुसूचित भारतीय भाषाओं में ट्रांसलेट की गई हैं, जिससे देशभर के छात्रों के लिए समान पहुंच सुनिश्चित हो। यह परंपरा पहले से चली आ रही है, और ये शीर्षक न तो अनुवाद योग्य हैं और न ही बदले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें गहरे सांस्कृतिक और भाषाई अर्थ है। पाठ्यपुस्तकों के नाम भारतीय शास्त्रीय संगीत और सांस्कृतिक परंपराओं से प्रेरित हैं, जो NEP 2020 के सांस्कृतिक जड़ों को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण के अनुरूप है। नाम जैसे ‘मृदंग’, ‘संतूर’, और ‘पूर्वी’ भारत की साझा विरासत को दर्शाते हैं और बच्चों में भारतीय संस्कृति के प्रति गर्व और परिचय की भावना जगाते हैं।

NCERT ने आगे कहा कि मैथ्स की किताब का “गणित प्रकाश” टाइटल भारत की समृद्ध गणितीय विरासत से लिया गया है। यह शीर्षक आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त और श्रीनिवास रामानुजन जैसे महान भारतीय गणितज्ञों के योगदान को दर्शाता है।

तमिलनाडु में तीन भाषा नीति का विरोध

बता दें कि तमिलनाडु में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 का राज्य सरकार विरोध कर रही है। स्थिति ये है कि सीएम स्टालिन ने नई शिक्षा नीति को तमिलनाडु में लागू करने से साफ इंकार कर दिया है। यह नीति स्कूलों में तीन भाषाओं- मातृभाषा, अंग्रेजी, और एक अन्य भारतीय भाषा के अध्ययन को बढ़ावा देती है, लेकिन तमिलनाडु इसे हिंदी थोपने का प्रयास मानता है। राज्य के कई नेताओं ने इसे संस्कृत के जरिए उनकी पुरानी विरासत को खत्म करने की कोशिश कहा है। इसी वजह से हिंदी और संस्कृत का विरोध हो रहा है।

हाल ही में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा था कि हिंदी सिर्फ मुखौटा है और केंद्र सरकार की असली मंशा संस्कृत थोपने की है। उन्होंने था कि हिंदी की वजह से उत्तर भारत में अवधी, बृज जैसी कई बोलियां खत्म हो गईं, राजस्थान में भी उर्दू को हटाकर संस्कृत थोपने की कोशिश की जा रही है।

महाराष्ट्र में भी हिंदी का विरोध
इधर महाराष्ट्र सरकार ने भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) को लागू करने का फैसला लिया है। इस नीति के तहत 2025-26 से राज्य में मराठी और अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में पांचवीं कक्षा तक के छात्रों के लिए हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा, जिसका विरोध हो रहा है। विपक्षी दल और क्षेत्रीय नेता इस कदम को मराठी पहचान पर चोट मान रहे हैं।

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