इत्र कारोबारी पीयूष जैन के ठिकानों से मिली 181 करोड़ रुपये की नकदी ने जांच एजेंसियों के सामने बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। विभागीय अफसरों का कहना है कि पीयूष का कारोबार इतना बड़ा नहीं है कि नवंबर 2016 में नोटबंदी और बीच में करीब डेढ़ साल के कोरोना काल के बाद वह इतनी बड़ी रकम जुटा ले। ऐसे में नकदी किसकी है, कहां से आई और कहां खपाई जानी थी? जैसे तमाम सवालों के जवाब तलाशने की चुनौती महानिदेशालय जीएसटी इंटेलिजेंस (डीजीजीआई) समेत अन्य जांच एजेंसियों के सामने हैं। सूत्रों का दावा है कि यह रकम किसी बड़े नेता की हो सकती है, जिसे चुनाव में खपाने के लिए यहां इकट्ठा किया गया था। सूत्रों का कहना है कि आनंदपुरी में मिले नोटों को काफी संजोकर रखा गया था। गड्डी को पहले कागज और फिर पन्नी और बाद टेप लगाकर सुरक्षित किया गया था, ताकि नोटों को लंबे समय तक आसानी से रखा जा सके।
इत्र कारोबारियों का कारोबार कानपुर और कन्नौज में है। इनकी बहुत बड़ी फैक्ट्री या इकाई नहीं है, जिससे इतना बड़ा टर्नओवर हो। ऐसे में हवाला का कारोबार लंबे समय से संचालित होने की संभावना जताई जा रही है।
इस बात की आशंका ज्यादा है कि आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर हवाला के जरिये मोटी रकम इत्र कारोबारी के ठिकानों पर जुटाई गई, जिसे यहां से अलग-अलग शहरों में भेजने की योजना रही हो। हालांकि, जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ेगी, खुलासा होता जाएगा।
आयकर विभाग की जांच शुरू होने पर आय के स्रोतों, संपत्तियों आदि की जानकारी सामने आने की उम्मीद है। डीजीजीआई ने शिखर पान मसाला, ट्रांसपोर्टर प्रवीण जैन और इत्र कारोबारी के यहां एक साथ छापा मारा था।
ऐसे में शिखर पान मसाला कंपनी के मालिक प्रदीप अग्रवाल, ट्रांसपोर्टर और कारोबारी के अलग-अलग मिलने वालों का रुपया होने के एंगल पर भी जांच की जा रही है।
घर में तहखाना, पुरातत्व विभाग की टीम करेगी जांच
इत्र कारोबारी के यहां जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है। नए-नए खुलासे हो रहे हैं। जांच में पता चला है कि इत्र कारोबारी के कन्नौज स्थित मकान में तहखाना है। इसमें बोरियों में रुपये भरकर रखे गए हैं। इसके अलावा मकान की दीवारों में नोटों की गड्डी और गहने छिपाए गए हैं।
वहीं पूरे मकान की दीवारों में जगह-जगह नोट या गहने होने की आशंका के चलते डीजीजीआई की टीम ने लखनऊ के पुरातत्व विभाग के अफसरों से संपर्क किया है। रविवार को पुरातत्व विभाग की टीम उपकरणों के माध्यम से नोट, गहने आदि का पता लगाएगी।
पहले नई कारों से होती थी कर चोरी
सूत्रों के अनुसार इत्र पर 18 फीसदी जीएसटी है। कन्नौज इसका बड़ा हब है। जीएसटी लगने के बाद कर चोरी के लिए कारोबारी नई-नई कारों का इस्तेमाल करते थे। इत्र आदि के डिब्बों या बक्सों को आसानी से सेडान लग्जरी कारों में छिपाया जा सकता है।
पहले नई कारों का नंबर भी देर से मिलता था। इत्र कारोबारी इसका लाभ उठाते थे। नई-नई कारें खरीदकर और रुपयों की हेराफेरी में उनका इस्तेमाल कर बेच देते थे। एक चक्कर में ही 10 लाख का इत्र इधर से उधर हो जाता था।