आत्मचिंतन उन्नति की सीढ़ी है-ब्र.कु. भगवान भाई

राजनांदगांव। दूसरों कीवि शेषताएं देखने और धारण करने में ही हमारी आत्मा की उन्नति होती है।दूसरों के अवगुण को देखकर अगर हम उनका चिंतन-मनन करते हैं और उन्हें जगह-जगह फैलाते हैं, तो वे पलट कर हमारे पास ही आ जाते हैं और हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं।आत्मचिंतन उन्नति की सीढ़ी है, तो पर चिंतन पतन की जड़ है।| उक्त उदगार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू राजस्थान से आये हुए बी. के. भगवान भाई ने कहे | वे स्थानीय ब्रह्माकुमारी जराजयोग सेवा केंद्र द्वारा नवनिर्मित ज्ञान मानसरोवर में दो दिवसीय राजयोग साधना द्वारा खुशहाल जीवन विषय के समापन के कार्यक्रम में ईश्वर प्रेमी भाई बहनों को संबोधित करते हुए बोल रहे थे |
उन्होंने कहा कि यदि हम स्वयं आंतरिक रूप से रिक्त होंगे तो अपनी रिक्तता को बाहरी तत्वों से भरने के लिए हमेशा दूसरों से कुछ लेने का प्रयास करेंगे, यदि हमार अंतर्मन प्यार, सौहार्द और मैत्रीभाव से भरा रहेगा तो हम जगत में प्यार और मैत्री को बाँटते चलेंगे।उन्होंने कहा कि राजयोग के द्वारा ही हम अपने संस्कारों को सतोप्रधान बना सकते हैं।इंद्रियों पर काबू कर सकते हैं।क्रोधमुक्त और तनावमुक्त रहने के लिए हमें रोजाना ईश्वर का चिंतन, गुणगान करना चाहिए।सकारात्मक चिन्तन से हम जीवन की विपरीत एवं व्यस्त परिस्थितियों में संयम बनाए रखने की कला है।
भगवान भाई जी ने कहा कि आध्यात्मिक ज्ञान को सकारात्मक विचारों का स्रोत बताते हुए कहा कि वर्तमान में हमे आध्यात्मिकता को जानने की जरुरी है | आध्यात्मिकता की परिभाषा बताते हुए उन्होंने कहा स्वयं को यर्थात जानना, पिता परमात्मा को जानना, अपने जीवन का असली उद्देश्य को और कर्तव्य को जानना ही आध्यात्मिकता है।आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा सकारात्मक विचार मिलते है जिससे हम अपने आत्मबल से अपना मनोबल बढ़ा सकते है।उन्होंने कहा कि सत्संग से प्राप्त ज्ञान ही हमारी असली कमाई है।इसे न तो चोर चुरा सकता है और न आग जला सकती है।ऐसी कमाई के लिए हमें समय निकालना चाहिए।सत्संग के द्वारा ही हम अच्छे संस्कार प्राप्त करते हैं और अपना व्यवहार सुधार पाते हैं।

error: Content is protected !!