दिल्ली सरकार के कर राजस्व का लगभग 14% आबकारी विभाग से आता है, जो शराब और नशीले पदार्थों के व्यापार को नियंत्रित और विनियमित करता है और शराब की गुणवत्ता को सुनिश्चित करता है. 1 जुलाई 2017 से जीएसटी लागू होने के बाद, मानव उपभोग के लिए सिर्फ शराब पर उत्पाद शुल्क लगाया गया था. इसलिए, शराब की बिक्री से आबकारी विभाग का सबसे बड़ा राजस्व निकलता है.
शराब की आपूर्ति प्रणाली में कई घटक शामिल हैं: निर्माताओं, दिल्ली में स्थित गोदामों, सरकारी और निजी शराब की दुकानों, होटलों, क्लबों और रेस्तरां से आखिरकार उपभोक्ताओं तक. आबकारी विभाग विभिन्न शुल्कों से पैसे जमा करता है, जिनमें उत्पाद शुल्क, लाइसेंस शुल्क, परमिट शुल्क, आयात और निर्यात शुल्क शामिल हैं.
लाइसेंस जारी करने में नियमों का उल्लंघन
कैग रिपोर्ट के अनुसार, आबकारी विभाग ने लाइसेंस जारी करते समय नियमों का पालन नहीं किया. 2010 के दिल्ली आबकारी नियम, नियम 35 के अनुसार, एक व्यक्ति या कंपनी को एक से अधिक प्रकार (थोक, खुदरा, होटल-रेस्तरां) के लाइसेंस नहीं दिए जा सकते, लेकिन जांच में पाया गया कि कुछ कंपनियों को एक साथ कई प्रकार के लाइसेंस दिए गए.
कुछ कंपनियों ने शराब व्यापार में कार्टेल बनाने और ब्रांड प्रमोशन में अपनी हिस्सेदारी को छिपाने के लिए प्रॉक्सी मालिकाना हक का सहारा लिया. इसमें वित्तीय स्थिरता, बिक्री और कीमतों से जुड़े दस्तावेज, अन्य राज्यों में घोषित कीमतें और आवेदकों के आपराधिक रिकॉर्ड की जांच जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल थे, लेकिन कई बार आबकारी विभाग ने बिना आवश्यक जांच किए ही लाइसेंस जारी कर दिए.
कीमत मनमाने ढंग से तय की गई
रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि थोक विक्रेताओं को शराब की फैक्ट्री से निकलने वाली कीमत तय करने की स्वतंत्रता दी गई, जिससे कीमतों में हेरफेर किया गया. जांच में पाया गया कि एक ही कंपनी द्वारा विभिन्न राज्यों में बेची जाने वाली शराब की कीमत अलग-अलग थी. मनमाने ढंग से तय की गई कीमतों के कारण कुछ ब्रांडों की बिक्री घटी और सरकार को उत्पाद शुल्क के रूप में नुकसान हुआ. सरकार ने कंपनियों से लागत मूल्य की जांच नहीं की, जिससे मुनाफाखोरी और कर चोरी की संभावना बनी रही.
टेस्ट रिपोर्ट नहीं थी उपलब्ध
दिल्ली में बिकने वाली शराब की गुणवत्ता आबकारी विभाग की जिम्मेदारी है. नियमों के अनुसार, हर थोक विक्रेता को भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार टेस्ट रिपोर्ट जमा करनी होती है. लेकिन जांच में पाया गया कि बहुत से लाइसेंस धारकों ने आवश्यक गुणवत्ता की जांच रिपोर्ट नहीं दी. 51% मामलों में विदेशी शराब की जांच रिपोर्ट या तो एक साल से पुरानी थींया उपलब्ध ही नहीं थीं. कई रिपोर्टें उन लैब्स से जारी की गईं जो नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लेबोरेट्रीज से मान्यता प्राप्त नहीं थीं.
शराब तस्करी को रोकने में आबकारी खुफिया ब्यूरो की भूमिका कमजोर रही. 65% जब्त की गई शराब देसी थी, जो बताता है कि अवैध शराब की आपूर्ति बड़ी मात्रा में हो रही थी. शराब तस्करी को रोकने में आधुनिक तकनीकें, जैसे डेटा एनालिटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता, का उपयोग नहीं किया गया.
कैबिनेट की मंजूरी के बिना बड़ा बदलाव
नई आबकारी नीति 2021-22 में भी कई कमियां थीं. सरकार ने निजी कंपनियों को थोक व्यापार का लाइसेंस देने का फैसला किया, जिससे सरकारी कंपनियों को बाहर कर दिया गया, और कैबिनेट की मंजूरी के बिना नीति में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ. इस नीति के कारण सरकार को ₹2,002 करोड़ का नुकसान हुआ.
कंपनियों ने लाइसेंस वापस कर दिए थे
कई कंपनियों ने अपने लाइसेंस बीच में ही वापस कर दिए, जिससे सरकार को ₹890 करोड़ का घाटा हुआ. जोनल लाइसेंस धारकों को कोविड-19 महामारी के दौरान ₹941 करोड़ की छूट दी गई, जिससे राजस्व घाटा हुआ. सरकार ने लाइसेंस फीस में ₹144 करोड़ की छूट दी, जो आबकारी विभाग के पहले के निर्देशों के खिलाफ था.
राजस्व हानि और तस्करी के पैटर्न को ट्रैक करना असंभव हो गया क्योंकि आबकारी विभाग ने अधूरे और बिखरे हुए रिकॉर्ड बनाए थे.
AAP सरकार शराब लाइसेंसधारियों द्वारा कानून तोड़ने पर सजा देने में विफल रही.
आपूर्ति श्रृंखला (supply chain) धोखाधड़ी से बच गई क्योंकि Excise Adhesive Label Project लागू नहीं हुआ.
CAG ने दिया है यह सुझाव
कैग ने सुझाव दिया है कि लाइसेंस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए और नियमों का सख्ती से पालन हो, शराब की कीमतों को पारदर्शी बनाया जाए और सरकार मुनाफाखोरी को रोकने के लिए कीमतों का विश्लेषण करे, और गुणवत्ता नियंत्रण को सख्त बनाया जाए ताकि नकली और मिलावटी शराब की बिक्री रोकी जाए. शराब की तस्करी को रोकने, नई नीति बनाने, और सरकार को हुए वित्तीय नुकसान के लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए नवीनतम तकनीक और डेटा एनालिटिक्स का इस्तेमाल करें.
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि आबकारी विभाग को शराब के मूल्य निर्धारण, गुणवत्ता नियंत्रण और नियामक तंत्र को मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए. इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद अब यह देखना होगा कि दिल्ली सरकार इस पर क्या करती है और इन सुझावों को कैसे लागू किया जाता है.