नई दिल्ली: मछली खाने वालों के लिए डरावनी खबर है. उनके लिए भी बुरी है जो सी-फूड्स के दिवाने हैं. क्योंकि समुद्रों से लगातार ऑक्सीजन (Oxygen) कम हो रहा है. एक नई स्टडी के मुताबिक साल 2080 तक दुनिया के सभी समुद्रों से 70 फीसदी ऑक्सीजन की भारी कमी हो जाएगी. इसकी एक ही वजह है. इंसानों ने प्रदूषण इतना फैलाया कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) हो रहा है. क्लाइमेट चेंज की वजह से ये सब हो रहा है.
नई स्टडी में खुलासा हुआ है कि समुद्रों का बीच वाला हिस्सा जहां पर सबसे ज्यादा मछलियां पाई जाती हैं. जिससे पूरी दुनिया का मछली उद्योग फलफूल रहा है. वहां पर लगातार ऑक्सीजन की कमी (Lack of Oxygen) हो रही है. वह भी अत्यधिक अप्राकृतिक दर से. पिछले साल 2021 में दुनिया भर के समुद्रों में ऑक्सीजन गंभीर स्तर पर पहुंच गया है. समुद्रों में ऑक्सीजन घुली हुई होती है. वह भी गैस के रूप में. जैसे जमीन पर जानवरों को सांस लेने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है, वैसे ही समुद्री जीवों को भी ऑक्सीजन की जरूरत होती है. लेकिन जिस तरह से क्लाइमेट चेंज की वजह से समुद्र गर्म हो रहे हैं, उनके पानी में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा लगातार कम होती जा रही है. वैज्ञानिक दशकों से लगातार समुद्र में कम हो रहे ऑक्सीजन को ट्रैक कर रहे हैं.
नई स्टडी में क्लाइमेट मॉडल्स के जरिए बताया गया है कि कैसे आने वाले समय में समुद्रों में घुली हुई ऑक्सीजन खत्म होती चली जाएगी. इस प्रक्रिया को डीऑक्सीजेनेशन (Deoxygenation) कहते हैं. यह सिर्फ किसी खास समुद्र में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के समुद्र इससे प्रभावित होंगे. बस इतना अंतर हो सकता है कि कहीं कम हो तो कहीं ज्यादा. नई स्टडी में पता चला है कि अगर एक बार समुद्रों में घुली हुई ऑक्सीजन खत्म या कम हो गई तो उसे वापस से बना पाना असंभव होगा. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे ठीक करना अत्यधिक मुश्किल है. समुद्र के बीच का लेवल डीऑक्सेजेनेशन की प्रक्रिया से ज्यादा प्रभावित हो रहा है. ये लेवल अब मछलियों के लिए सुरक्षित नहीं रहा है. साल 2021 में मिले इससे जुड़े डेटा काफी डराने वाले हैं.
स्टडी के मुताबिक साल 2080 तक डीऑक्सीजेनेशन (Deoxygenation) की प्रक्रिया दुनिया के सभी समुद्रों में तेज दर से होगी. ये भी संभावित है कि तब तक समुद्र के बीच के लेवल से 70 फीसदी घुली हुई ऑक्सीजन कम हो जाए. यह स्टडी हाल ही में AGU जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुई है. जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि क्लाइमेट चेंज की वजह से ऑक्सीजन का स्तर जमीन, पानी और वायुमंडल तीनों पर लगभग एक जैसा असर डाल रहा है.
समुद्र के बीच का लेवल यानी 200 मीटर से 1000 मीटर की गहराई को मेसोपिलैजिक जोन (Mesopelagic Zone) कहते हैं. इसमें भी कई जोन होते हैं. क्लाइमेट चेंज की वजह से पहले जोन में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत ज्यादा कम हो रही है. वैश्विक स्तर पर मेसोपिलेजिक जोन में मछली उद्योग से जुड़ी वो सारी मछलियां पाई जाती हैं, जिनका व्यापार पूरी दुनिया में होता है. चाहे वह खाने के लिए हो या फिर उनसे किसी तरह का उत्पाद बनाने के लिए. व्यवसायिक उपयोग वाली मछलियों की प्रजातियां अगर खत्म होंगी तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा. समुद्री खाद्य पदार्थों की कमी होगी. साथ ही समुद्री पर्यावरण पर खासा प्रभाव देखने को मिलेगा. लगातार बढ़ रहा तापमान समुद्री जल को गर्म कर रहा है. गर्म पानी में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है. यानी समुद्री लेयर्स के बीच जो करंट दौड़ता है वह कम हो जाएगा. समुद्र के बीच का स्तर डीऑक्सीजेनेशन (Deoxygenation) को लेकर काफी ज्यादा संवेदनशील होता है. क्योंकि यहां पर न तो फोटोसिंथेसिस करने वाले पौधे या शैवाल या अन्य प्रजातियां होती हैं, न ही पूरी तरह से सूरज की रोशनी पहुंचती है. लेकिन इसी लेवल पर ऐसी एल्गी जरूर पाई जाती हैं, जो सबसे ज्यादा ऑक्सीजन की खपत करती है. इन्हें खाने के चक्कर में मछलियां इनके पास रहती है. ये खत्म तो मछलियां खत्म. फिर मछली व्यवसाय भी प्रभावित होगा. शंघाई जियाओ तोंग यूनिवर्सिटी की ओशिएनोग्राफर यूंताओ झोउ ने कहा कि समुद्र का बीच वाला जोन बहुत जरूरी है. क्योंकि व्यवसायिक तौर पर उपयोग होने वाली ज्यादातर मछलियां इसी में पाई जाती हैं. डीऑक्सीजेनेशन की वजह से समुद्री स्रोतों पर काफी ज्यादा असर पड़ेगा. लेकिन मछलियां तो हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा है. अगर वो कम हो गई तो दुनिया में आर्थिक और भोजन के स्तर पर काफी बदलाव आएगा. यूंताओ झोउ ने कहा कि इंसानों ने धरती के सबसे बड़े इकोसिस्टम को बदलने की शुरुआत काफी पहले कर दी थी. अब वो इसे बिगाड़ रहे हैं. इस इकोसिस्टम का मेटाबोलिक स्टेट खराब हो रहा है. हमें नहीं पता कि इंसानों द्वारा बढ़ाए जा रहे क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से समुद्री इकोसिस्टम पर किस तरह का खतरनाक असर पड़ेगा. लेकिन यह बात तो तय है कि समुद्र की हालत बिगड़ेगी तो उसका असर इंसानों पर भी होगा. यूंताओ ने कहा कि अगर इसी तरह से ऑक्सीजन कम होता रहा तो इंसानों को ऑक्सीजन मिनिमम जोन्स पर ध्यान देना होगा. वहां के आसपास मौजूद जमीनी इलाकों से प्रदूषण के स्तर को कम करना होगा. क्लाइमेट चेंज रोकना होगा. ग्लोबल वॉर्मिंग को थामना होगा. नहीं तो समुद्र में हुए उथल-पुथल से जमीन पर भी भारी असर होगा. ऐसा नहीं है कि समुद्र को आप दरकिनार कर दोगे तो जमीन पर सही से रह लोगे.