बंदी की मौत को हाई कोर्ट ने माना सरकारी कर्मचारियों की लापरवाही, दिया मुआवजा देने का आदेश…

 बिलासपुर। जेल में बंदी की मौत के लिए राज्य के कर्मचारियों को जिम्मेदार मानते हुए हाई कोर्ट ने शासन को एक लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि आदेश का पालन नहीं होने पर उक्त राशि पर 9% ब्याज देना होगा. मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरू की डिवीजन बेंच में हुई.

जानकारी के मुताबिक, सीपत पुलिस ने 18 जनवरी को ग्राम मोहरा निवासी 35 वर्षीय श्रवण सूर्यवंशी उर्फ सरवन तामरे को कच्ची शराब रखने के आरोप में गिरफ्तार किया था. मेडिकल कराने के बाद उसे 18 जनवरी को बिलासपुर केन्द्रीय जेल भेज दिया गया. 21 जनवरी को स्वास्थ्य खराब होने पर जेल से उसे सिम्स में भर्ती कराया गया, जहां 22 जनवरी की सुबह इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई.

पुलिस ने मर्ग कायम कर उसी दिन शाम को पोस्टमार्टम कराया, जिसमें सिर में चोट व सदमे से उसकी मौत होने की बात कही गई. मृतक श्रवण की बेवा लहार बाई व नाबालिग बच्चों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर मुआवजा की मांग की. मामले की न्यायिक जांच कराई गई, इसमें न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने जांच प्रतिवेदन में सिर के चोट लगने के कारण मौत होने की रिपोर्ट दी.

मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता मृतक की विधवा पत्नी और बेटियाँ हैं. राज्य के कर्मचारियों की लापरवाही से मौत हुई है. गलत तरीके से हुए नुकसान के लिए बंदी के परिजन मुआवजे के हकदार हैं.

कोर्ट ने बार-बार इस तरह के आचरण की निंदा करते हुए कहा कि पुलिस/जेल अधिकारी इसका हिस्सा है. राज्य एक निवारक प्रभाव डाले, ताकि उसके अधिकारी ऐसा न करें. ऐसे कृत्यों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाए. इसके साथ ही श्रवण सूर्यवंशी की असामयिक मृत्यु पर कोर्ट ने शासन को याचिकाकर्ताओं को एक लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया.

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