नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में दशकों बाद ऐसा मौका आने वाला है, जब देश चार महीनों में तीन चीफ जस्टिस देखेगा. इसी साल जुलाई से नवंबर के दौरान CJI एनवी रमण के अलावा जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ भी मुख्य न्यायाधीश बनेंगे. इस दिलचस्प संयोग के पांच साल बाद 2027 में भी देश ऐसे ही संयोग का साक्षी होगा. साल 2027 में सितंबर से अक्टूबर के दरम्यान दो महीनों में तीन चीफ जस्टिस आएंगे और जाएंगे.
सुप्रीम कोर्ट के रिकॉर्ड, परंपरा और प्रैक्टिस के मुताबिक 2027 में 27 सितंबर को जस्टिस विक्रम नाथ मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त होंगे और देश को पहली महिला मुख्य न्यायाधीश मिलेंगी. जस्टिस बीवी नागरत्ना 35 दिन के लिए देश की मुख्य न्यायाधीश होंगी. इसके बाद जस्टिस पीएस नरसिम्हा 31 अक्टूबर 2027 से छह महीने तीन दिन के लिए चीफ जस्टिस बनेंगे. बता दें कि 2027 तक इतने कम समय में तीन चीफ जस्टिस बनने का ये तीसरा मौका होगा. सुप्रीम कोर्ट 1950 में अस्तित्व में आया और उसके बाद सबसे पहले 1991 में नवंबर और दिसंबर के बीच देश में तीन अलग-अलग CJI बने थे. तब CJI रंगनाथ मिश्रा 24 नवंबर 1991 को रिटायर हुए थे. फिर जस्टिस कमल नारायण सिंह 25 नवंबर से 12 दिसंबर तक यानी कुल 18 दिन के लिए चीफ जस्टिस बने. बाद में जस्टिस एमएच कानिया चीफ जस्टिस बने और 13 दिसंबर 1991 से 17 नवंबर 1992 तक यानी 11 महीने तक इस सर्वोच्च पद पर जिम्मेदारी संभाली.
पारंपरिक रूप से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अपनी वरिष्ठता के आधार पर CJI के रूप में कार्यभार संभालते हैं. चीफ जस्टिस के तौर पर कोई कार्यकाल निर्धारित नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु संविधान के तहत 65 वर्ष निर्धारित की गई है. हाल ही में भारत के महान्यायवादी यानी अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि वह उन परिस्थितियों का अंदाजा लगा सकते हैं जो वर्तमान CJI एनवी रमणा की सेवानिवृत्ति के साथ सामने आएंगी. वेणुगोपाल ने कहा कि मेरा मानना है कि प्रत्येक CJI का कार्यकाल कम से कम तीन साल होना चाहिए. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख के साथ-साथ न्यायिक और प्रशासनिक सुधार जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दे भी होते हैं. इन जिम्मेदारियों के साथ ही बड़ी संख्या में बकाया मामलों की समस्या को भी कारगर ढंग से निपटाने की आवश्यकता है.’
सुप्रीम कोर्ट में यदि 8 नवंबर तक कोई नई नियुक्ति नहीं हुई तो नौ रिक्तियां हो जाएंगी. परंपरा के अनुसार सेवा के आखिरी महीनों में मुख्य न्यायाधीश नई नियुक्तियां नहीं कर सकते. ऐसे में मौजूदा CJI रमणा को मई, जून और जुलाई में नियुक्तियों के लिए प्रयास करना होगा. इसके बाद जस्टिस ललित के पास नियुक्तियां करने के लिए एक माह बचेगा, क्योंकि उनका कार्यकाल दो माह से कुछ ज्यादा का ही है. यहां बता दें कि रिटायर से एक माह पहले मुख्य न्यायाधीश को अगले CJI का नाम सरकार को भेजना पड़ता है. यह संस्तुति करने के बाद मुख्य न्यायाधीश नई नियुक्तियों के कोलेजियम (पांच वरिष्ठतम जजों का चयन मंडल) में बैठ सकते हैं. चीफ जस्टिस की नियुक्ति वरिष्ठता के आधार पर करने की परंपरा और निवर्तमान चीफ जस्टिस की ओर से उत्तराधिकारी की सिफारिश की परंपरा का उल्लंघन अब तक तीन बार हुआ है. पहली बार पंडित जवाहर नेहरू के प्रधानमंत्री कार्यकाल में फरवरी 1964 जस्टिस इमाम की वरिष्ठता को दरकिनार कर जस्टिस गजेंद्र गडकर को चीफ जस्टिस बनाया गया था. इसके सात साल बाद 1971 में पंडित नेहरू की पुत्री और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जस्टिस शेलत हेगड़े और जस्टिस ग्रोवर की वरिष्ठता और दावेदारी को नजरंदाज कर जस्टिस एएन रे को मुख्य न्यायाधीश बनाया था. इसके छह साल बाद 1977 में इंदिरा गांधी सरकार ने फिर यही मनमानी दोहराई. तब जस्टिस हंसराज खन्ना की दावेदारी को खारिज किया गया और वरिष्ठतम जज को नियुक्त करने की परंपरा को तोड़कर जस्टिस एमएच बेग को मुख्य न्यायाधीश बनाया गया. उस समय इंदिरा गांधी सरकार के फैसलों को गलत बताने वाले जस्टिस एचआर खन्ना को चीफ जस्टिस नहीं बनाया गया. लेकिन अब उन्हीं जस्टिस खन्ना के भतीजे जस्टिस संजीव खन्ना दो साल बाद नवंबर 2024 से मई 2025 तक चीफ जस्टिस बनाए जाने की कतार में हैं.