नोटबंदी सही या गलत, सुप्रीम कोर्ट में फैसला आज

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा साल 2016 में 500 और 1000 रुपये के नोट बंद कर दिए गए थे. सरकार द्वारा अचानक लिए गए इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इसके खिलाफ 58 याचिकाएं दाखिल की गईं, जिन पर आज फैसला आ सकता है. आज सुप्रीम कोर्ट इस बात का फैसला सुना सकती है कि सरकार के नोटबंदी का फैसला सही था या नहीं.

न्यायमूर्ति एसए नजीर की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की पीठ इस केस को लेकर फैसला सुना सकती है. न्यायमूर्ति एसए नजीर 4 जनवरी को रिटायर भी हो रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक इस मामले में दो अलग-अलग फैसले सुनाए जाएंगे, जिसे  न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना सुनाएंगे.

पांच न्यायाधीशों की पीठ में न्यायमूर्ति नजीर, न्यायमूर्ति गवई और न्यायमूर्ति नागरत्ना के अलावा, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन भी शामिल हैं.

क्या हैं आरोप?
सरकार के खिलाफ याचिका दाखिल करने वाले लोगों का आरोप है कि सरकार ने कानून के खिलाफ जाकर नोटबंदी के फैसले को लागू किया था. याचिकाकर्ता पक्ष के वकील चिदंबरम ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को ‘गंभीर रूप से दोषपूर्ण’ बताया था और कोर्ट में दलील दी थी कि केंद्र सरकार कानूनी निविदा से जुड़े किसी भी प्रस्ताव को खुद शुरू नहीं कर सकती है. ये फैसला केवल RBI के सेंट्रल बोर्ड की सिफारिश पर ही हो सकता है.

चिदंबरम का ये भी कहना था कि सरकार ने नोटबंदी के फैसले को लागू करने से पहले ठीक से जानकारी नहीं दी थी, न ही आरबीआई को भेजी गई चिट्ठी को रिकॉर्ड पर रखा गया है.  चिदंबरम का आरोप है कि सरकार का फैसला आरबीआई एक्ट, 1934 के प्रावधानों के अनुरूप नहीं था. इस कानून के मुताबिक, सरकार को नोट वापस लेने के फैसले से पहले लोगों को इसके बारे में जानकारी देनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया और ऐलान के तुरंत बाद फैसले को लागू कर दिया गया. इससे लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ.

सरकार ने क्या कहा?
केंद्र सरकार ने नोटबंदी के फैसले की कवायद पर दोबारा विचार करने के सुप्रीम कोर्ट के प्रयास का विरोध किया था और कहा था कि कोर्ट ऐसे माामले का फैसला नहीं कर सकती है. बीत चुके समय में लौटकर किसी को कोई राहत नहीं दी जा सकती है.

हालांकि, सरकार ने इस मामले में बहस के दौरान कहा कि ये फैसला टैक्स चोरी और काले धन के लेन-देन को रोकने के लिए सोच-समझकर लिया गया था. इसका उद्देश्य नकली नोटों को चलन से हटाने और आतंकियों की फंडिंग पर लगाम लगाना था. सरकार ने इन दोनों समस्याओं की तुलना जरासंध से करते हुए कहा था कि इनके टुकड़े करना जरूरी था.

सरकार ने कहा कि आरबीआई एक्ट, 1934 के तहत सरकार के पास किसी भी नोट को वापस लेने का अधिकार मौजूद है. सरकार ने नियमों के तहत ही ये फैसला लिया था. केंद्र सरकार की तरफ से दावा किया गया कि आरबीआई ने नोटबंदी को लेकर सिफारिश की थी. काफी सलाह-मशविरा के बाद इसे लागू किया गया था. ये एक आर्थिक और नीतिगत फैसला था जिसकी समीक्षा कोर्ट में नहीं की जा सकती.

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