नई दिल्ली. देश में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ थोड़ी ही देर में दोबारा सुनवाई शुरू करने वाली है. इस बीच केंद्र ने कहा है कि अदालत इस मामले में कोई फैसला करने से पहले केंद्र को राज्यों के साथ परामर्श की प्रक्रिया को पूरा करने का समय दे. केंद्र ने इस मामले में सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों को भी पक्षकार बनाने की मांग की है.
केंद्र का कहना है कि भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में समवर्ती सूची में ‘विवाह’ शामिल है. इसलिए समलैंगिक विवाह की कानून मान्यता को लेकर दायर याचिकाओं पर किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले सभी राज्यों के साथ परामर्श आवश्यक है. समवर्ती सूची में उन मामलों को रखा जाता है, जो केंद्र एवं राज्य दोनों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं.
केंद्र ने कहा कि उसने सभी राज्यों से परामर्श की कवायद शुरू कर दी है. चूंकि इस मुद्दे के दूरगामी प्रभाव हैं, इसलिए यह आग्रह किया जाता है कि राज्यों को वर्तमान कार्यवाही में पक्षकार बनाया जाए और उनके संबंधित रुख को रिकॉर्ड में लिया जाए. केंद्र ने साथ ही कहा है कि इस मुद्दे पर राज्यों को एक पक्ष बनाए बिना मौजूदा मुद्दे पर विशेष रूप से उनकी राय प्राप्त किए बिना कोई भी निर्णय ‘अधूरा और छोटा’ होगा.
केंद्र ने राज्यों से 10 दिन में मांगा जवाब
इसके साथ ही केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग के मामले में सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के साथ परामर्श की प्रक्रिया शुरू कर दी है. केंद्र ने सभी राज्य सरकारों से इस मामले पर राय मांगी हैं और उनसे 10 दिन के भीतर जवाब मांगा है.
इस मामले में दायर की गई 20 याचिकाओं पर प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने मंगलवार को सुनवाई शुरू की थी. इस बेंच में सीजेआई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं.