भुवनेश्वर। भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को लोगों को स्वस्थ बॉडी और शांत मन पाने के लिए योग करने की सलाह दी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भुवनेश्वर में ज्ञानप्रभा मिशन के स्थापना दिवस समारोह में सभा को संबोधित करते हुए कहा, स्वस्थ जीवन के लिए इलाज से बेहतर बचाव है। यदि हम ‘योग-युक्त’ (योग से जुड़े) रहते हैं, तो हम ‘रोग-मुक्त’ रह सकते हैं। योग के माध्यम से हम स्वस्थ शरीर (बॉडी) और शांत मन प्राप्त कर सकते हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि आज की दुनिया में मटेरियलिस्टिकसुख पहुंच के भीतर है, लेकिन बहुतों के लिए मन की शांति नहीं है। उन्होंने कहा कि उनके लिए मन की शांति पाने का एकमात्र तरीका योग है।
राष्ट्रपति ने कहा कि वह ज्ञानप्रभा मिशन के स्थापना दिवस समारोह का हिस्सा बनकर खुश हैं, जिसकी स्थापना मां की शक्ति और क्षमता को जगाने और एक स्वस्थ मानव समाज के निर्माण के उद्देश्य से की गई थी। उन्होंने कहा कि यह गर्व की बात है कि इस मिशन का नाम परमहंस योगानंद जी की मां के नाम पर रखा गया है जो उनकी प्रेरणा थीं। उन्होंने कहा कि योग भारत का एक प्राचीन विज्ञान और आध्यात्मिक अभ्यास है, जिसका उद्देश्य एक स्वस्थ मानव समाज का निर्माण करना है। राष्ट्रपति ने आगे कहा कि हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें माता-पिता, गुरु और अतिथि को ईश्वर के समान मानना सिखाया। लेकिन क्या हम इस शिक्षा को अपने जीवन में अपनाते हैं? यह एक बड़ा सवाल है। क्या बच्चे अपने माता-पिता की उचित देखभाल कर रहे हैं? अक्सर अखबारों में बुजुर्ग माता-पिता की दुखभरी कहानियां छपती हैं।
उन्होंने कहा कि योग भारत का एक प्राचीन विज्ञान और आध्यात्मिक अभ्यास है, जिसका उद्देश्य एक स्वस्थ मानव समाज का निर्माण करना है। राष्ट्रपति ने आगे कहा कि हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें माता-पिता, गुरु और अतिथि को ईश्वर के समान मानना सिखाया। लेकिन क्या हम इस शिक्षा को अपने जीवन में अपनाते हैं? यह एक बड़ा सवाल है। क्या बच्चे अपने माता-पिता की उचित देखभाल कर रहे हैं? अक्सर अखबारों में बुजुर्ग माता-पिता की दुखभरी कहानियां छपती हैं।
मुर्मू ने लोगों को सलाह दी कि वे अपने माता-पिता की उचित देखभाल करें और उनका सम्मान करें। उन्होंने कहा कि माता-पिता को भगवान कहना और उनके चित्रों की पूजा करना ही अध्यात्म नहीं है। माता-पिता का ख्याल रखना और उनका सम्मान करना जरूरी है। उन्होंने सभी से वरिष्ठ नागरिकों, बुजुर्गों और बीमारों की सेवा को अपने जीवन-व्रत के रूप में अपनाने का आग्रह किया। राष्ट्रपति ने कहा, हमारी भौतिकवादी अपेक्षाएं और आकांक्षाएं बढ़ रही हैं, लेकिन हम धीरे-धीरे अपने जीवन के आध्यात्मिक पक्ष से दूर होते जा रहे हैं। पृथ्वी के संसाधन सीमित हैं, लेकिन मानव की इच्छाएं असीमित हैं।
उन्होंने सभी से वरिष्ठ नागरिकों, बुजुर्गों और बीमारों की सेवा को अपने जीवन-व्रत के रूप में अपनाने का आग्रह किया। राष्ट्रपति ने कहा, हमारी भौतिकवादी अपेक्षाएं और आकांक्षाएं बढ़ रही हैं, लेकिन हम धीरे-धीरे अपने जीवन के आध्यात्मिक पक्ष से दूर होते जा रहे हैं। पृथ्वी के संसाधन सीमित हैं, लेकिन मानव की इच्छाएं असीमित हैं।
वर्तमान विश्व प्रकृति के असामान्य व्यवहार को देख रहा है जो जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी के तापमान में वृद्धि में परिलक्षित होता है। उन्होंने कहा कि हमारी अगली पीढ़ी को एक सुरक्षित भविष्य देने के लिए प्रकृति के अनुकूल जीवन शैली आवश्यक है। उन्होंने आगे कहा, हमने विज्ञान में चाहे कितनी भी तरक्की कर ली हो, हम प्रकृति के मालिक नहीं, उसकी संतान हैं। हमें प्रकृति का आभारी होना चाहिए। हमें प्रकृति के अनुरूप जीवन शैली अपनानी चाहिए।