पति की मौत के बाद जुटाया हौसला… लिया समाजसेवा का संकल्‍प, बेटियों को सिखा रहीं आत्‍मरक्षा की कला

इंदौर। इन दिनों बंगाल और महाराष्ट्र में बेटियों से दुष्कर्म के बाद पूरे देश में उबाल है। आरोपियों को सख्त सजा देने के साथ लोगों की मांग है कि बेटियों को आत्मरक्षा का कौशल सिखाया जाए। परंतु इंदौर में पलक आनंद पिछले दो सालों से बेटियां को निश्शुल्क तलवारबाजी, दंड और पटा चलाना सीख रही हैं। अपने पति की मौत के बाद पलक ने समाजसेवा का संकल्‍प लिया और आज वे प्रेरणा की मिसाल बन गई हैं।

365 महिलाओं और बच्चियों को किया पारंगत

पलक अब तक 365 महिला-बच्चियों को शस्त्र चलाना सिखा चुकी हैं, जिनमें पांच साल की बच्ची से लेकर 55 साल की महिलाएं शामिल हैं। इनका मानना है कि बेटियों को इस काबिल बनाना है कि वे अपने साथ परिवार की रक्षा भी कर सकें।

  • शहर की 33 वर्षीय पलक नरवरिया समाज में महिला सशक्तीकरण पर काम कर रही हैं।
  • साल 2012 में इनकी शादी आनंद नरवरिया से हुई। तब वे नर्सिंग का कार्य करती थी।
  • कुछ साल बाद पलक नरवरिया ने अपना खुद का डायग्नोसिस सेंटर खोला।
  • पलक नरवरिया के पति समाजसेवा में काफी सक्रिय रहते थे। वे चाहते थे कि उनकी बेटी आत्मरक्षा सीखे।
  • परंतु पलक समाजसेवा से काफी दूर रहती थीं। वे अपने बेटी को केवल पढ़ाना चाहती थीं।
  • साल 2021 में पलक के पति का निधन हो गया। इसके बाद उन्होंने ‘आनंद है’ संस्था खोली।
  • शुरुआत में पलक नरवरिया ने एक एंबुलेंस के जरिये लोगों की मदद करनी शुरू की।
  • लावारिस शवों और जरूरतमंद मरीजों को उन्होंने एंबुलेंस के माध्यम से निश्शुल्क गंतव्य पर पहुंचाया।
  • बाद में पलक नरवरिया ने ब्लड डोनेशन कैंप के जरिए लोगों को राहत पहुंचाई।
  • वर्तमान में पलक नरवरिया की 10 साल की बेटी उन्नति भी समाजसेवा में हाथ बंटाती है।

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सभी बेटियों को सशक्त बनाने की ठानी
पलक ने बताया कि मेरे पति अपने बेटी को आत्मरक्षा सिखाने के लिए कहते थे। बाद में जब मैंने इसकी जरूरत समझी तो केवल अपनी बेटी नहीं, बल्कि सभी बेटियों को सशक्त बनाने के लिए सोचा, ताकि अपनी और किसी की बेटी पर कोई आंच नहीं आए।
1 अक्टूबर को 11 स्थानों पर लगेंगे कैंप
  • संस्था आनंद शहर में 1 अक्टूबर को 11 जगहों पर आत्मरक्षा के निश्शुल्क कैंप लगाएगी।
  • आत्मरक्षा के निश्शुल्क कैंप में तलवार, दंड और पटा चलाना सिखाया जाएगा।
  • पलक ने बताया कि बेटियां अपनी सुरक्षा के लिए किसी पर निर्भर न रहें, इसके लिए यह कैंप आयोजित किया जाएगा।
  • पलक के अनुसार शस्त्र कला सीखकर बेटियां खुद के साथ परिवार की भी रक्षा कर सकेंगी।
संस्था का नाम ‘आनंद ’ इसलिये रखा
साल 2021 में पति के जाने के बाद पलक इस चीज को स्वीकार नहीं कर पा रहीं थीं। इसके बाद उन्होंने संस्था को आनंद नाम से खोला। लोग पलक से कहते थे कि अब आनंद इस दुनिया में नहीं हैं। पलक इस बात को अस्वीकार करती रहीं। पलक हमेशा मानती थीं कि आनंद हमेशा उनके साथ हैं। इस बात को साबित करने के लिए संस्था का पूरा ‘आनंद है’ रख दिया। इस वाक्य से आनंद हर समय उपस्थित महसूस होते हैं।
कुप्रथा के विरोध के साथ समाजसेवा की शुरुआत
पलक ने बताया कि कई जगहों पर पति की मृत्यु के बाद महिला को अछूत समझा जाता है। कुछ दिनों तक उसे कोई छूता नहीं है। कोई बात नहीं करता है। एकांत में रख दिया जाता है। मैंने नानी, मां आदि लोगों को इस कुप्रथा का शिकार होते देखा था। वहीं मेरे पति के जाने के बाद मैं भी अछूती नहीं रही।
लोगों को किया जागरूक
पलक के अनुसार इसके बाद मैंने सोचा कि अन्य महिलाओं को इस कुप्रथा का शिकार नहीं होने दूंगी। इसके लिए मैंने लोगों को जागरूक करना शुरू किया कि इस प्रथा से पति की आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। इस प्रथा से किसी का भला नहीं होगा। तब कई लोग इस कुप्रथा को छोड़ने के लिए जागरूक हुए।

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